बच्‍चों के व्‍यक्तित्‍व विकास में माता-पिता की भूमिका

माता-पिता बनने के साथ ज़िम्‍मेदारियाँ बढ़ जाती हैं। संतान के पालन-पोषण का दायित्‍व कंधे पर आ जाता है और जबसे सृष्टि हुई है, तबसे आज तक कोई ऐसा माता-पिता नहीं रहा जिसने अपने बच्‍चों की सही देखभाल न की हो। यह गुण स्‍वत: माता-पिता में आ जाता है। प्रेम इसका मुख्‍य आधार है, जो बच्‍चों के व्‍यक्तित्‍व विकास में उनकी मदद करता है। संतान होने के पहले पति-प‍त्‍नी ने कभी संतान के पोषण का प्रशिक्षण नहीं लिया लेकिन संतान होने के बाद माता-पिता ख़ासकर माता के पास वह गुण अपने आप आ जाता है, बच्‍चों को कैसे रखा जाए, कितना दूध दिया जाए, उस अनबोले शिशु की सभी आवश्‍यकताएँ माँ समझ जाती है, उसकी मौन भाषा में वह अर्थ ढूँढ़ लेती है। माँ के पास यह गुणवत्‍ता कहाँ से आ गई, सिर्फ़ प्रेम ने उसे इस योग्‍य बना दिया कि वह किसी भी परिस्थिति में अपने बच्‍चे को पाल सके। जिससे हम प्रेम करते हैं, उसके प्रति बिना किसी प्रशिक्षण के हम अपनी पूरी ज़िम्‍मेदारी सफलता पूर्वक निभा ले जाते हैं।

बच्चों के व्यक्तित्व विकास में माता पिता का हाथ

बच्‍चों के व्‍यक्तित्‍व विकास के लिए ज़रूरी बातें

Tips for personality development of children

1. प्रेम को अति पर न जाने दें

पालन-पोषण के लिए सिर्फ़ प्रेम काफ़ी है, बच्चों के व्‍यक्तित्‍व विकास के लिए कुछ और चीज़ें ज़रूरी हैं जैसे अनुशासन, पारिवारिक माहौल आदि। अनुशासन तो प्रेम पैदा कर देता है लेकिन कभी-कभी अति पर लेकर चला जाता है। जैसे यदि आप बच्‍चे को डाँटते हैं, मारते हैं या उसकी बहुत सारी इच्‍छाओं पर अपनी सहमति नहीं जताते हैं, उसकी हर हाँ में हाँ नहीं मिलाते हैं। य‍ह प्रेम के चलते ही होता है ताकि बच्चे के भीतर ऐसी कोई आदत न पड़ जाए जो उसे आजीवन भ्रम व बुरी संगतों के दलदल में धकेल दे। लेकिन कभी- कभी यही प्रेम अति पर चला जाता है, ख़ासकर बच्‍चा जब माता-पिता की बात नहीं मानता है तो माता-पिता क्रोध में आकर उसे मारने लगते हैं या अन्‍य तरह की प्रताड़ना देने लगते हैं। इससे बच्‍चे के अंदर विरोधी भावना पैदा होती है और आप जिस चीज़ के लिए उसे मना करते हैं वह आपको नकारने के लिए उसे करने लगता है और धीरे-धीरे यह उसकी आदत में शुमार हो जाता है जो जीवन भर उसे तो दु:ख देता ही है, आपको भी दु:खी करता है। ऐसी स्थिति में धैर्य के साथ उसे समझाने की ज़रूरत होती है क्‍योंकि आपका अनुभव उससे कई गुना ज़्यादा होता है।

2. पारिवारिक माहौल बनायें

प्रेम माहौल पैदा नहीं करता। माहौल पैदा करने के लिए अनुभव व समझ ज़रूरी होती है। संयुक्‍त परिवार में इसकी कमी नहीं थी। अनेक तरह व प्रकृति के लोग एक साथ एक परिवार में प्रेमभाव से रहते थे। बच्‍चे को संभालने के लिए कई लोग मौजूद होते थे। उसे ग़लत दिशा में जाने पर अनेक लोग टोकने वाले होते थे। लेकिन जैसे-जैसे संयुक्‍त परिवार टूटता जा रहा है, वैसे-वैसे पारिवारिक माहौल बनने में कमी आती जा रही है। अब स्थितियाँ और जटिल होती जा रही हैं। पति-पत्‍नी दोनों नौकरी में हैं तो बच्‍चे की देखभाल हॉस्‍टल में या घर पर होती है तो दाई के भरोसे। ऐसे में बच्‍चे के बिगड़ने व शुष्‍क होने की आशंका ज़्यादा होती है। इसलिए बच्‍चों के व्‍यक्तित्‍व विकास के लिए ज़रूरी है कि उनके साथ दादा-दादी, चाचा-चाची न भी रहें तो कम से कम माता-पिता का पूरा प्‍यार व समय उसे मिलना चाहिए ताकि उसका विकास उचित देखरेख में हो सके।

3. पास-पड़ोस को भी बनायें प्रेमपूर्ण

घर व पास-पड़ोस में एक ऐसा माहौल बनाने की ज़रूरत है जिसमें भय, ईर्ष्‍या, विवाद, अराजकता, पक्षपात, उलझन को स्‍थान न हो। यह प्रेमपूर्ण माहौल केवल अपने परिवार में ही नहीं बल्कि पास-पड़ोस में भी बनाने की ज़रूरत है क्‍योंकि बच्‍चों के व्‍यक्तित्‍व विकास पर सिर्फ़ परिवार का ही प्रभाव नहीं पड़ता है बल्कि पड़ोस की भी छाप पड़ती है। हर माता-पिता का लक्ष्‍य होना चाहिए कि उनका बच्‍चा उनसे एक क़दम आगे हो। यह तभी होगा कि जब वे उस माहौल को बदलने की कोशिश करेंगे जिसमें वे पले-बढ़े हैं।

4. स्‍वयं को बदलें

बच्‍चे को सही माहौल देने के लिए माता-पिता को स्‍वयं भी बदलना चाहिए। उन्‍हें हमेशा ख़ुश दिखना चाहिए। चूंकि बच्‍चा कोरा काग़ज़ होता है जो भी उसके सामने आएगा, उसकी अमिट छाप उसके चित्‍त पर पड़ेगी और वह आजीवन के लिए उसकी हो जाएगी। इसलिए घर में तनाव न हो, कलह न हो किसी तरह की उलझन पैदा नहीं करनी चाहिए। साथ ही उसके साथ जब रहें तो उसकी रुचियों में शामिल हों, इससे वह प्रसन्‍न होगा। वह प्रकृति के निकट जाता है तो उसके साथ स्‍वयं भी प्रकृति का निरीक्षण करें। उसके लिए सारी चीज़ें बिल्‍कुल नई हैं। वह एक-एक चीज़ को जानने की कोशिश करेगा, इसमें उसकी मदद करें लेकिन बताने का तरीक़ा बोझिल व गंभीर न हो।

प्रोत्साहन करें, हेल्प नहीं

5. अपनी इच्‍छाएँ न थोंपे

बच्‍चों पर कभी अपनी इच्‍छाएँ नहीं थोंपनी चाहिए। उनकी रुचि का आँकलन कर उस दिशा में बढ़ने में उसे सहयोग करना चाहिए। आमतौर पर अधिकांश माता-पिता यह सोचते हैं कि जो मैं नहीं कर सका वह इच्‍छाएँ बच्‍चों से पूरी हो जाएँ। इस प्रक्रिया में बच्‍चों को प्रताड़ित किया जाता है। जैसे उनकी रुचि संगीत में है लेकिन माता-पिता अपनी इच्‍छा के अनुरूप उन्‍हें डॉक्‍टर, इंजीनियर या कुछ और बनाने की कोशिश करते हैं। ऐसी स्थिति में बच्‍चों के व्‍यक्तित्‍व विकास में बाधा आती है जिससे वह न तो डॉक्‍टर, इंजीनियर बन पाएगा और न ही संगीतकार भी नहीं बन पाएगा। जबकि उसकी संभावना एक अच्‍छे संगीतकार की थी।

6. बच्‍चे को कठिनाइयों से बचायें नहीं

बच्‍चे के सामने यदि कोई कठिनाई या समस्‍या आ गई है तो उसे हल करने में उसकी मदद न करें बल्कि उसे स्‍वयं उसका हल ढूँढ़ने दें। उस पर नज़र रखें कि कहीं वह हतोत्‍साहित न हो जाए, उसे उत्‍साहित करते रहें लेकिन कभी समाधान देने की कोशिश न करें। समस्‍याओं से लड़कर ही वह मज़बूत बनेगा। यदि शुरू में ही आपने उसे सहयोग कर दिया और सवाल पैदा नहीं हुआ कि उसके सामने समाधान हाज़िर कर दिया तो वह आश्रित हो जाएगा और जीवन की बड़ी समस्‍याओं में घिरने पर जब आप उसके साथ नहीं होंगे तो वह हतोत्‍साहित होगा और यह उम्‍मीद करेगा कि कोई आए और इस समस्‍या का हल ढूँढ़ दे। बच्‍चों के व्‍यक्तित्‍व विकास की राह पर उन्हें प्रोत्साहित करें, न कि उनकी लाठी बन जाएँ।

7. बच्‍चे पर अपने विचार न थोंपे

एक पश्चिमी विचारक ने कहा है कि आप बच्‍चों को सिर्फ़ पोषण दे सकते हैं, उन्‍हें विचार नहीं दे सकते क्‍योंकि वे आपसे एक पीढ़ी आगे हैं। आमतौर पर घर में बच्‍चा आता है तो उसे प्रेम से देखना ही प्रर्याप्‍त है न कि उसे देखकर उसे क्‍या बनाना है, यह भाव मन में आए। यदि बच्‍चे की उचित देखभाल की जाए और प्रकृति व दुनिया को समझने का उसे भरपूर मौक़ा दिया जाए तो निश्चित ही वह एक महत्‍वपूर्ण व्‍यक्ति बनेगा। लेकिन होता यह है कि हम उसे अपने धार्मिक विचारों, नैतिकता और तमाम तरह के ऐसे विचारों से उसे भरने की कोशिश करते हैं जिसे हम अपने और अपने समाज के लिए उपयोगी मानते हैं। इससे बच्‍चे का स्‍वाभाविक विकास नहीं हो पाता और उसकी एक कोटि निर्धारित हो जाती है। वह हिंदू बन जाएगा, मुसलमान बन जाएगा, इसाई बन जाएगा या कुछ और बन जाएगा। खुले आकाश में उड़ने की उसकी प्रवृति जो स्‍वाभाविक रूप से उसके साथ जन्‍म ली थी, वह नष्‍ट हो जाएगी।

आशा है कि बच्‍चों के व्‍यक्तित्‍व विकास पर आधारित यह आलेख आपको अवश्य पसंद आएगा, आप इसे सोशल मीडिया पर अपने मित्रों के साथ ज़रूर शेअर करें।

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