हीन भावना से छुटकारा पाने के उपाय

मैंने बहुत से लोगों को देखा है कि वो किस तरह हीन भावना (Inferiority Complex) से ग्रसित रहते हैं। मैं झूठ नहीं बोलूँगा, मैं पहले इनमें से ही एक था। इसलिए मैंने निश्चय किया कि इस समस्या को पहचानकर इससे कैसे भी करके उबर जाऊँगा। जब आप किसी व्यक्ति को अपने से बेहतर मानने लगते हैं तब हीन भावना आप में घर कर जाती है। ऐसा करने से आप ख़ुद को दीन हीन समझने लगते हैं।

असुरक्षा, जलन और ईष्या प्राकृतिक रूप से सभी में होती है लेकिन जब यह आवश्यकता से ज़्यादा हो जाए तो आपको नुक़सान पहुँचाने लगती है। अत: आज मैं आपको बताऊँगा कि मैं ख़ुद के लिए हीन भावना से कैसे मुक्ति पायी।

हीन भावना पर जीत

हीन भावना पर जीत

1. ख़ुद की कमी स्वीकारना

सबसे पहले तो आपको हीन भावना से ग्रसित होने की बात स्वीकारनी होगी। जब आप समझने लगते हैं कि हीन भावना आपको दुर्बल बना रही है तो आप इस स्थिति में ख़ुद को मैनेज करना चाहते हैं। इसलिए सबसे पहले स्वीकारें कि आपमें कमी है और आपको इसे दूर करना है।

2. आत्मनिरीक्षण करना

इस समस्या ने निकलने के लिए सबसे पहले आत्मनिरीक्षण करना होगा। दिमाग़ में घूमते हुए बवंडर के बीच में आपको शांति का क्षण खोजना होता है। शांति के इन क्षणों में आत्मनिरीक्षण करके असुरक्षा की भावना की जड़ को पहचानिए। क्या आप कम बुद्धिमान है? क्या आपको बात करनी और उठना बैठना नहीं आता है? क्या आपमें कपड़े पहनने का ढंग नहीं है? या फिर आपके साथ कोई सही व्यवहार नहीं करता है?

आपको एक ही बार में सही उत्तर मिल जाए इसकी सम्भावना कम है। नहीं किसी सोशल मीडिया साइट पर आप इसके बारे में किसी से इन बातों का सही उत्तर पा सकते है। आपको स्वयं ही ख़ुद के अंदर की कमियों का पता करना होगा।

3. अपनी क्षमता जानिए

जो लोग दूसरों से तुलना करके ख़ुद को हीन मानते हैं, वह जल्दी ही ख़ुद को सबसे अच्छा भी मान लेते हैं। ख़ुद को किसी से अच्छा मान लेना कोई सच्चाई नहीं है बल्कि यह ख़ुद से बोला गया झूठ है। इसलिए ख़ुद से झूठ बोलना बंद कीजिए। तो फिर आपको कैसे बदलना चाहिए? इसलिए अपने को सक्षम बनाएँ।

अगर आपको लगता है कि कोई बात करने में आपसे बेहतर हैं तो इसे स्वीकार कीजिए। उससे प्रेरणा लेकर आप एक अच्छे वक्ता बनने का प्रयास कीजिए। आपको इस बात को इग्नोर करने की बिल्कुल भी ज़रूरत नहीं है।

अब आप उस स्थिति में हैं जहाँ आपने अपनी कमी पहचान ली है और उसे दूर करने का निर्णय कर लिया है। अब अगले चरण में आपको यह बात समझनी होगी।

4. सच को समझना

हमें समझना होगा कि दुनिया में हम अपने जैसे अकेले हैं और हम में कुछ न कुछ विशेष ज़रूर है। आपने इस विचार को कई बार सुना होगा लेकिन आज हम आपको कुछ नया बताने वाले हैं।

हीन भावना का जन्म तब होता है जब कोई अन्य व्यक्ति आपको चेताता है कि आपमें कुछ बहुत ही अच्छा है। आप इस बात को स्वयं नहीं स्वीकारते बल्कि बाहरी प्रभाव से प्रेरित होकर स्वीकार करते हैं। इसके बाद आप जो करते हैं उसके सही होने की पुष्टि के लिए आप दूसरों पर निर्भर रहते हैं। यह बाहरी प्रभाव आपका दोस्त, आपकी पति या पत्नी, परिवार या फिर कोई अन्य भी हो सकता है, लेकिन बाहरी प्रेरणा अंतर्मन की प्रेरणा से अधिक मजबूत नहीं हो सकती है। इसी कारण से आप कुछ दिन तो अच्छा अनुभव करते हैं और समय बदलते ही आप ख़ुद को हीन समझने की भूल कर बैठते हैं। इसलिए आपको अपने को पहचाना बहुत ज़रूरी है ताकि आप आत्मनिर्भर बन सकें।

जब आप अंतर्मन से आश्वस्त नहीं हैं तो बाहरी प्रभाव आपको कुछ ही क्षणों के लिए आश्वस्त करती हैं। जब आप ख़ुद को कमज़ोर महसूस करते हैं तो कोई दूसरा आपके अंदर की इस कमी को दूर नहीं कर सकता है।

इसलिए आपको ख़ुद पर विश्वास करना आना चाहिए। आपको पता होना चाहिए कि आप पूर्ण नहीं हैं लेकिन ये भी सच है कि आपके जैसा कोई दूसरा नहीं है। आपको मानना होगा कि कमी तो है लेकिन इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता है। आपको जानकर हैरानी होगी कि जो लोग आपको बहुत आत्मविश्वासी लगते हैं वो भी अंदर से बहुत असुरक्षित महसूस करते हैं। दुनिया में ऐसा कोई नहीं जिसमें आत्मविश्वास की कमी न हो, लेकिन फिर हम ख़ुद को दूसरों से सामने कमज़ोर महसूस करने लगते हैं। इसलिए दूसरों की जय करने से पहले ख़ुद की जय कीजिए।

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