लकवे का इलाज सात परिक्रमा से

विज्ञान के तो बहुत से चमत्‍कार हैं। हमारे आसपास जो भी सुविधाएं और और दवाइयां या इलाज के उपकरण हैं उनमें विज्ञान का ही योगदान है। लेकिन पराविज्ञान को भी इन्‍कार नहीं किया जा सकता है। पराविज्ञान के चमत्‍कार सचमुच आश्‍चर्यचकित कर देते हैं। इसकी गणित समझ में नहीं आती है लेकिन परिणाम सामने हो तो हर आदमी विश्‍वास करने को मजबूर हो जाता है। आज हम ऐसे ही एक चमत्‍कारी सिद्ध पीठ के बारे में चर्चा करेंगे जहां लकवे का इलाज सात परिक्रमा करके ही किया जा सकता है।

लकवे का इलाज – पारलौकिक विधि

लकवे का इलाज

सिद्ध योगी चतुरदास की समाधि

अजमेर-नागौर रोड पर स्थि‍त कुचेरा कस्‍बे के पास बूटाटी गांव में सिद्ध योगी चतुरदास की समाधि स्‍थली है। चतुरदास लगभग पांच सौ वर्ष पूर्व इस गांव में रहते थे। वह अपनी तपस्‍या से लोगों को रोगमुक्‍त करते थे। आज भी बड़ी संख्‍या में लकवा के रोगी यहां आते हैं और रोग मुक्‍त होकर जाते हैं। केवल चतुरदासजी की समाधि की केवल सात परिक्रमा करनी होती है। हर माह की द्वादशी तिथि तथा प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में बारस को एक भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। इसके अलावा वैशाख, भाद्रपद व माघ माह में यहां विशेष मेला लगता है।

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चतुरदासजी का मुख्‍य मंदिर

बूटाटी गांव में पश्चिम दिशा की ओर चतुरदासजी का मुख्‍य मंदिर है। आस्‍था का मुख्‍य केंद्र यह मंदिर ही है। लकवा के रोगियों को यहां सात दिन रुकना होता है और रोज एक बार समाधि की परिक्रमा करनी होती है। रोज सुबह आरती के बाद मंदिर के बाहर तथा शाम को आरती के बाद मंदिर के अंदर से परिक्रमा करनी होती है। इन दोनों परिक्रमाओं को मिलाकर एक परिक्रमा पूरी होती है। चूंकि लकवा से पीडि़त लोगा स्वयं चलने-फिरने में असमर्थ होते हैं इसलिए उनके तीमारदार ही उनको सहारा देकर या उठाकर परिक्रमा करवाते हैं।

धर्मशालाएं

श्रद्धालुओं के रहने के लिए यहां धर्मशालाएं हैं जिनमें सभी सुविधाएं मौजूद हैं। बिस्‍तर, राशन, बर्तन व जलावन की लकडि़यां नि:शुल्‍क उपलब्‍ध कराई जाती हैं। पास में ही बाजार भी हैं जहां से लोग अपनी जरूरत की चीजें खरीद भी सकते हैं।

अन्य रोगों में लाभ

लकवे का इलाज के अलावा यहां अनेक असाध्‍य रोगों का भी इलाज होता है। यहां कोई दवा नहीं दी जाती है और न ही कोई वैद्य या हकीम रहते हैं। श्रद्धालु आते हैं, समाधि की परिक्रमा करते हैं और हवन कुंड की भभूत लगाते हैं। इसी से बीमारी का असर धीरे-धीरे कम होता जाता है। शरीर के जो अंग बिल्‍कुल हिलते-डुलते नहीं थे, वह काम करने लगते हैं और लकवा से जिस मरीज की आवाज चली गई है, वह धीरे-धीरे बोलने लगता है। अनेक जगहों व बड़े चिकित्‍सा संस्‍थानों से निराश होकर लौटे लोग यहां आकर अपनी बीमारी से मुक्ति पा जाते हैं।

दान में आने वाले धन से मंदिर का विकास कार्य कराया जाता है और पुजारी को वेतन दिया जाता है। पूरे मंदिर परिसर में सैकड़ों मरीज व श्रद्धालु नजर आते हैं, सभी में असीम आस्‍था दिखती है और वे मुक्‍त कंठ से मंदिर व समाधि स्‍थल की प्रशंसा करते हैं।

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