नाड़ी परीक्षण या पल्स चेक करने की प्रक्रिया

आज के समय हम लोग जब गम्भीर बीमार पड़ जाते हैं तो डॉक्टर के पास जाकर अपनी समस्या बताते हैं और डॉक्टर बीमारी की वजह जानने के लिए जांच लिख देते हैं। वो जाँच की रिपोर्ट के आधार पर इलाज करते हैं। जबकि पहले के समय में डॉक्टर बीमारी का इलाज जाँच की रिपार्ट के आधार पर नहीं बल्कि मनुष्य का नाड़ी परीक्षण / जाँच करके गम्भीर से गम्भीर बीमारियों का इलाज करते थे।

नाड़ी परीक्षण
Check pulse on wrist

आज के समय में भी ऐसे कुछ डॉक्टर मौजूद है जो केवल रोगी की नस का परीक्षण करके रोगी का इलाज करते हैं और रोगी कुछ ही दिनों में ठीक हो जाते हैं।

नाड़ी परीक्षण की जाँच

दरअसल नाड़ी परीक्षण या पल्स चेक करना – रोगों का पता लगाने की एक सरल प्रक्रिया है। यह प्रक्रिया अति प्राचीन है जो आधुनिक पद्धति से भिन्न है।

इस प्रक्रिया में महिलाओं का बायाँ और पुरुषों का दायाँ हाथ देखा जाता है। इसमें तर्जनी, माध्यिका तथा अनामिका अंगुलियों को रोगी के कलाई के पास धमनी पर रखकर कफ, वात तथा पित्त इन तीन दोषों का पता लगाते हैं।

अंगूठे के पास की ऊँगली से वात, मध्य वाली ऊँगली से पित्त और अंगूठे से दूर वाली ऊँगली से कफ के दोष का पता लगाते हैं।

– वात की धमनी कभी मध्यम तो कभी तेज़ अर्थात् अनियमित चलती हुई महसूस होगी।

– पित्त की धमनी बहुत तेज़ चलती हुई महसूस होगी ।

– कफ की धमनी बहुत धीमी महसूस होगी ।

जब तीनों उंगलियों को हम एक साथ कलाई पर रख कर नाड़ी परीक्षा करते हैं। तो जो भी धमनी अपने सामान्य स्वरूप से अनियमित होकर कार्य करती है उसके आधार पर उसके रोग के कारण पता चलता है।

नाड़ी परीक्षण का समय

नाड़ी परीक्षण अधिकतर सुबह उठने के आधे या एक घंटे बाद करना चाहिए।

नाड़ी परीक्षण
Check pluse on neck

नाड़ी जाँच कर सही निदान करने वाले नाड़ी पकड़ते ही तीन सेकण्ड में दोष का पता लगा लेते हैं। वैसे तो नाड़ी को 30 सेकण्ड तक देखना चाहिए ताकि रोग के सही कारण का पता लगाया जा सके।

आज के समय भी कई लोग सिर्फ नाड़ी परीक्षण करके कई जटिल रोग जैसे मोटापा, मधुमेह, बांझपन, लकवा, अनिद्रा और त्वचा से संबंधित रोगों का इलाज करते हैं। हालांकि आज के समय में नाड़ी परीक्षण के माध्यम से इलाज करने वाले बहुत कम लोग हैं लेकिन यह इलाज आधुनिक इलाज से सस्ता होता था।

वैसे तो आज के समय में लगभग सभी रोग का इलाज संभव है लेकिन किसी भी रोग से मुक्त होने के लिए मनुष्य का शारीरिक रूप से स्वस्थ रहने के साथ साथ उसका मानसिक और भावनात्मक रूप से भी स्वस्थ रहना आवश्यक है। ताकि आप हमेशा स्वस्थ और रोग मुक्त रहें।

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