जीवन में सकारात्मक सोच का महत्व

Power of Positive Thinking
सकारात्मक सोच – जो बदल दे आपकी दुनिया और जीने का अंदाज़ भी। जो दे आपको जीने के लिए आशा की किरण और दिलाए सफलता प्राप्त करने का अचूक विश्वास।

सकारात्मक सोच, चंद शब्द नहींं है, जिसे थोड़े से शब्दों में समझाया जा सके कि ये क्या है, इसका जीवन में महत्त्व क्या है? ये ज़िंदगी का एक अहम पहलू हैं अगर सभी लोग इसको अपने जीवन में अपना लें, तो जीवन में कितने भी उतार चढ़ाव आयें उससे निकले का रास्ता भी मिल ही जाता है। परिस्थितियाँ कितनी ही विपरीत क्यों न हो मंज़िल ख़ुद-बख़ुद मिल जाती है। बस ज़रूरत है जीवन में सकारात्मक सोच अपनाने की।

विपरीत परिस्थितियाँ सबकी ज़िंदगी में आती हैं, मेरी भी ज़िंदगी में आयी यक़ीनन आप सब की ज़िंदगी में भी कभी न कभी आयी होंगी । सोच कर देखिये ऐसे कितने लोग होंगे जो अपने आत्मविश्वास को सुखी रेत की तरह मुठ्ठी से फिसलने नहीं देते। हालात के आगे अपने घुट्ने नहीं टेकते। तो शायद सिर्फ चंद लोग ही होंगे जिन्होंने अपनी स्कारात्मक सोच से अपने आत्म विश्वास को खोने नहीं दिया बल्कि इसे अपनी ताकत बनाकर अपनी मंजिल को पाया है।

Power of Positive Thinking – A Hindi Article

सकारात्मक सोच से आत्मविश्वास बढ़ता है और आत्मविश्वास से कुछ कर गुज़रने का साहस पैदा होता है। इसी साहस से उत्पन्न बल से व्यक्ति कठिन से कठिन समस्या को सुलझा लेता है।

इस बात को इस प्रेरक कहानी के द्वारा भी आप समझ सकते हैं –

एक दूधवाला था। वह दूध बेचने जा रहा था। खेल खेल में एक बच्चे ने उस दूधवाले की कैन में एक दुखीराम के मेंढक को पकड़कर उस दूध की कैन में डाल दिया और ढक्कन बंद कर दिया। कैन में बंद होते ही वह घबरा गया और यह सोचकर परेशान होने लगा की अब तो बाहर निकले का कोई रास्ता भी नहीं दिख रहा है। मन ही मन वह उस बच्चे को कोस रहा था जिसने उसे पकड़कर डाल दिया फिर भगवान को कोसने लगा की मुझे इतना शक्तिशाली बनाया होता की मैं इस बंद कैन से बाहर निकल पाता। इस प्रकार अपनी कमज़ोरियों को याद कर स्वयं का जीवन ख़तरे में डालता रहा। अपनी शक्तियों के बारे में तनिक भी विचार नहीं किया। फलस्वरूप दोष देते देते वह थोड़ी देर में जल में डूब गया।

दूसरे दिन फिर उसी बालक ने सुखीराम मेंढक को पकड़ कर उस दूध वाले की कैन में चुपके से डालकर ढक्कन बंद कर देता है। तब सुखी राम मेंढक ने इस विपरीत परिस्थितियों में अपने आत्मविश्वास को खोने नहीं दिया और अपनी शक्तियों के बारे में विचार करने लगा। ऐसे में उसे याद आया कि मेंढक की सबसे बड़ी क्षमता किसी भी द्रव में तैरने की होती है। अतः यह विचार करते ही वह तीव्रता से दूध में तैरने लगा। मेंढक के तैरने के 10-15 मिनट बाद दूध का मंथन हुआ। इस मंथन के कारण उसमें एक मक्खन का ढेर बन गया। जिस पर सुखीराम मेंढक बैठ गया। थोड़ी देर बाद जब कैन का ढक्कन खुला तो वह कूदकर भाग गया। इस तरह से सुखीराम मेंढक की जान बच गयी।

अब तो आप सब समझ गए होंगे की परिस्थितियाँ दोनों के सामने विपरीत आयी थी परंतु सुखीराम की सकारात्मक सोच की प्रवृत्ति के कारण उसकी जान बच जाती है। जबकि दुखी राम मेंढक की नकारात्मक सोच के कारण वह डूब जाता है।

आपके ज़िंदगी में भी कई नकारात्मक परिस्थितियाँ आयेंगी बस जरूरत है उन नकारात्मक परिस्थितियों में ख़ुद की शक्ति को पहचाने और नकारात्मक सोच को ख़त्म कर सकारात्मक सोचने की। उन परिस्थितियों से बाहर निकलने का प्रयास करने की। सफलता निश्चित आपके स्वयं मार्ग निर्मित कर देगी।

अगर आप ये सोच लें कि आप विपरीत परिस्थितियों से निकल सकते हैं, आपकी मंज़िल आपके सामने है, बस ज़रूरत होती है सिर्फ़ एक कदम बढ़ाने की, मंजिल ख़ुद-बख़ुद मिल जायेगी।

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