टीनएजर्स की समस्याएँ न समझने के कारण

किशोरावस्था एक ऐसी अवस्था जहाँ ख़ुद को लेकर टीनएजर्स अक्सर दुविधापूर्ण बने रहते हैं क्योंकि जहाँ न तो वे अब बच्चे रहते हैं और न बड़े। यहीं से सारी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं, जहाँ वे अक्सर ख़ुद को लेकर कंफ़्यूज़ रहते हैं। वे उम्र के इस पड़ाव को समझ नहीं पाते हैं और उनमें होने वाले शारीरिक बदलाव को लेकर कशमकश में बने रहते हैं।

आज हम आपको किशोरावस्था में होने वाले कंफ़्यूज़न के कारण बताने जा रहे हैं। ताकि आपके टीनएज के बच्चों को स्थिति में कोई कंफ़्यूज़न न झेलना पड़े और सही समय पर उन्हें सही गाइडेंस मिल सके।

टीनएजर्स की समस्याएँ

टीनएजर्स की समस्याएँ

1. हार्मोंस का प्रभाव

बाल्यावस्था के बीतने साथ ही बच्चों में कई तरह के शारीरिक परिवर्तन हो जाते हैं जो कि एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। इन परिवर्तनों के साथ साथ हार्मोंस में भी परिवर्तन होते हैं। जिससे टीनएजर्स मानसिक रूप से काफ़ी प्रभावित होते हैं। इस उम्र में अचानक छोटी छोटी बातों पर भावुक हो जाना साधारण बात होती है। जिस वजह से इस उम्र में लिए गए फ़ैसले सही कम और ग़लत ज़्यादा होते हैं। क्योंकि इसी अवस्था में बच्चे न समझी के कारण ग़लत राह में भटक सकते हैं।

2. अपनी पहचान को लेकर दुविधा

किशोरावस्था में टीनएजर्स से कहा जाता है कि तुम अभी छोटे हो और बड़ों के बीच बोलने का हक़ अभी तुम्हें नहीं है। इसी प्रकार जब वे अपने से छोटों के साथ खेलते हैं तो उन्हें ये कहा जाता है कि वे अब छोटे बच्चे नहीं हैं, जो वो छोटों के साथ खेलें। इस तरह की बातों से अक्सर उनके मन में अपनी पहचान को लेकर दुविधा बनी रहती है। जिससे वे चिड़चिड़े और खिन्न रह सकते हैं।

3. विपरीत सेक्स के प्रति आकर्षण

किशोरावस्था में विपरीत सेक्स के प्रति आकर्षण एक आम बात है। टीनएजर्स हार्मोंस के परिवर्तन के चलते विपरीत सेक्स के प्रति आकर्षित रहते हैं और अपने दोस्तों या अपने ही किसी ग़लत फ़ैसले के कारण कोई ग़लत क़दम उठा लेते हैं। इस उम्र पैरेंट्स का गाइडेंस बहुत मायने रखता है, जिससे वे कहीं चूकें नहीं। पैरेंट्स की भी ज़िम्मेदारी बनती है कि वे उनकी निगरानी करें और उनका सही मार्गदर्शन करें।

4. स्मार्टनेस का दिखावा

किशोरावस्था में ऊर्जा की कोई कमी नहीं होती है और इसलिए अक्सर देखा गया है कि अपनी उम्र के ग्रुप में एक ख़ास छवि बनाये रखने की कोशिश करते हैं। यही दिखावा उन्हें कई ग़लत आदतों की ओर ले जाता है, जैसे सिगरेट, शराब आदि की लत। इस प्रकार का व्यसन उनके शारीरिक और मानसिक विकास में भी बाधक बन जाता है। कभी कभी तो गम्भीर बीमारियाँ तक हो सकती हैं। इसलिए अपने बच्चों को ऐसे व्यसनों से दूर रखने का प्रयास करें।

5. बढ़ती प्रतिस्पर्धा और महत्वाकांक्षा

आज का समय बेहद प्रतिस्पर्धा भरा है और लोगों की इच्छाएँ उससे बड़ी हैं। लेकिन जब ये चीज़ें पूरी होती नहीं दिखती तब इस उम्र में टीनएजर्स अक्सर ग़लत कदम उठा बैठते हैं। इसलिए प्रतिस्पर्धा में न ढकेलें और उन्हें संयम का महत्व बताएँ।

6. पारिवारिक दबाव

बच्चे जैसे जैसे बड़े होते जाते हैं, माँ बाप की उम्मीदें उनसे उतनी ही बढ़ती जाती हैं। जबकि बच्चे की इच्छा क्या है? उसकी दिलचस्पी किस काम में है? माँ बाप ये जाने बगैर बच्चों पर अपनी इच्छाओं को थोप देते हैं। ऐसे में टीनएजर्स की इच्छाएँ मन में दब कर रह जाती हैं। एक तरफ़ बच्चों के ख़ुद के सपने और इच्छाएँ होती है और दूसरी तरफ अभिवावकों की इच्छाएँ। इन दोनों के बीच बच्चा अपने जीवन के लिए एक सही निर्णय नहीं ले पाता है। इसलिए अभिभावकों को अपनी इच्छा व्यक्त करने का अवसर देना चाहिए और उसी के अनुसार उसके कैरियर का निर्णय लेने में उसी मदद करनी चाहिए।

7. संयुक्त परिवार का न होना

एकल परिवार की कुछ सीमाएँ होती हैं और संयुक्त परिवार की तरह कोई बुजुर्ग टीनएजर्स का मार्गदर्शन करने के लिए नहीं होता है। एकल परिवार में अक्सर माता पिता व्यस्त दिनचर्या के कारण बच्चों को समय नहीं दे पाते हैं। परिणाम स्वरूप बच्चा अकेला और सफ़लता से चंद क़दम की दूरी पर रह जाता है। हो सके तो बच्चों की ख़ातिर ही आज संयुक्त परिवार को अपनाना चाहिए।

अगले अंक में हम आपको इन समस्याओं से बचने के उपाय बताएँगे। ताकि आप बच्चों को इस उम्र में सही गाइडेंस दे सकें।

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