बीमारियाँ दो तरह की होती हैं। एक तो जो बाहर से आपके शरीर के भीतर प्रवेश करती हैं। यह बाहरी जीवाणुओं का आपके शरीर पर हमला होता है। दूसरी जो आपके शरीर के भीतर पैदा होती हैं। इन दोनों बीमारियों को ठीक करने के लिए वर्तमान में हमारे पास एलोपैथ, आयुर्वेद, होम्योपैथ, एक्यूप्रेसर, सिद्ध व यूनानी आदि चिकित्सा पद्धतियाँ मौजूद हैं। चंडीगढ़ के डॉ. सतीश अरोड़ा ने स्पाइरल चिकित्सा पद्धति की खोज का दावा किया है और अनेक गंभीर मरीजों को उन्होंने बिना दवा व परहेज़ के ठीक किया है। इन सभी चिकित्सा पद्धतियों में कौन महत्वपूर्ण है, यह कह पाना मुश्किल है। सभी के अपने-अपने गुण-धर्म हैं। वर्तमान में एलोपैथ, आयुर्वेद, होम्योपैथ व एक्यूप्रेसर चिकित्सा पद्धतियाँ ज़्यादा चलन में हैं। सिद्ध चिकित्सा पद्धति का प्रचलन दक्षिण भारत में ज़्यादा है।

1. आयुर्वेद
आयुर्वेद हमारी प्राचीन चिकित्सा पद्धति है। इसमें रोग के कारणों का उपचार किया जाता है, कारण समाप्त होते हैं तो रोग अपने आप समाप्त हो जाता है। इसका प्रचलन भारत में इतना अधिक था कि घर-घर में आयुर्वेद चिकित्सा के जानकार थे। वे जानते थे कि कौन सी जड़ी-बूटी या वनस्पतियां किस रोग में काम आती हैं। इसीलिए इसे देशी दवा भी कहते हैं।
आयुर्वेद यह मानता है इस शरीर का निर्माण उन्हीं पंचभूतों- पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश व हवा से हुआ है, जो शरीर के बाहर हैं। शरीर के किसी रोग को समाप्त करने के लिए वह इन्हीं पंचभूतों का प्रयोग करता है। यहाँ तक कि खान-पान में भी इन दवाओं का प्रयोग रोज़मर्रा के जीवन में किया जाता है। जैसे पंचफोरन, तुलसी का पत्ता, लहसुन, काली मिर्च, अदरक, पुदीना आदि ये सब औषधियाँ हैं जो मनुष्य के जीवन को संतुलित व स्वस्थ रखने में कारगर भूमिका निभाती हैं। साथ ही जब आयुर्वेद की दवा चलती है तो बहुत से खान-पान का परहेज़ करा दिया जाता है ताकि औषधि पूरी त्वरा में कार्य कर सके। साथ ही इसमें अनुपान अर्थात किस चीज़ के साथ दवा लेनी है, का विशेष महत्व है, यदि मधु के साथ दवा लेनी है और आपने पानी के साथ ले लिया तो वह अपेक्षित लाभ नहीं पहुंचाएगी। यदि दूध के साथ दवा खानी है तो उसे दूध के साथ ही खाना चाहिए। यदि भीतर से पैदा हुई बीमारी है और आपके पास उसे ठीक करने का पर्याप्त समय है तो आयुर्वेद सबसे अच्छी चिकित्सा पद्धति है, यह रोग को जड़ से समाप्त कर देती है।
2. एलोपैथ
एलोपैथ वर्तमान समय की सबसे तेज़ चिकित्सा पद्धति है। इसका प्रचार-प्रसार भी बहुत है और जगह-जगह इसके चिकित्सक व चिकित्सा संस्थान उपलब्ध हैं। आमतौर पर यदि व्यक्ति को कोई परेशानी होती है तो वह सबसे पहले एलोपैथिक चिकित्सा संस्थानों में ही भागता है, उसे तत्काल लाभ भी मिल जाता है। लेकिन इसकी दवाएं रसायनों से तैयार होती हैं, इसलिए एक बीमारी यदि ठीक होती है तो दूसरी के पैदा होने की आशंका बढ़ जाती है। जब यह बात लोगों को पता चली तो अब धीरे-धीरे लोग पुन: आयुर्वेद और होम्योपैथ की तरफ़ जा रहे हैं। फिर भी बाहरी जीवाणुओं के हमले से उत्पन्न रोग या कोई दुर्घटना हुई है तो ऐसी स्थिति में एलोपैथ का कोई जवाब नहीं है। इसकी दवाएं तुरंत काम करती है और लाभ पहुंचा देती हैं। ख़ासकर तत्काल संक्रमण रोक देने और धीरे-धीरे जल्दी उसे समाप्त कर देने में यह पैथी बहुत कारगर है। आपरेशन के मामले में भी इस पैथी का कोई जवाब नहीं है। लेकिन बहुत सी बीमारियाँ ऐसी हैं जिसे एलोपैथ सिर्फ संभाल सकता है, उसे ठीक नहीं कर सकता। जैसे गठिया, ब्लडप्रेसर, शुगर, दमा आदि। इसका ठीक इलाज वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों में ही है। फिर भी अपने त्वरित कार्य प्रणाली के चलते एलोपैथ सबकी चहेती बन गई है। सबसे ज़्यादा शैक्षणिक व चिकित्सा संस्थान तथा चिकित्सक इसी पैथी के हैं।
3. होम्योपैथ
होम्योपैथ एक कारगर चिकित्सा पद्धति है जो व्यक्ति के विचारों, अंतर्द्वंद्व आदि पर अध्ययन कर चिकित्सा करती है। इसे भी शुद्ध रूप से प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति कहा जाता है। अनेक स्थानों पर मीठी गोली के नाम से यह प्रसिद्ध है। इस चिकित्सा पद्धित में रोग के लक्षणों तथा रोगी की सोच, खान-पान व रहन-सहन में पसंदीदा चीज़ों पर विचार कर चिकित्सा प्रदान की जाती है। इस दवा में दवा खाने में बीच के समय के अंतराल का व परहेज़ का बड़ा महत्व है। ज्यादा जटिल रोगों में यह पैथी भी आयुर्वेद की भांति ज़्यादा कारगर है।
4. एक्यूप्रेशर
एक्यूप्रेशर भी शुद्ध रूप से प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति है। चीन व जापान में इसका विस्तार ज़्यादा है। अब भारत में भी यह पैथी अपना स्थान बनाने लगी है। इस पैथी में कोई दवा नहीं खानी पड़ती। यह पैथी भी पंचतत्वों पर आधारित है। इस पैथी का मानना है कि शरीर पंचतत्वों से बना है, इन्हीं पंचतत्वों में किसी तत्व के असुंतलन की वजह से रोग का जन्म होता है। इसलिए इस पैथी में हाथ-पैरों में निश्चित बिंदुओं पर दबाव देकर पंचतत्वों को संतुलित किया जाता है, उनके संतुलन से बीमारी को दूर करने का प्रयास किया जाता है। अब यह पैथी मेरिडियन पर काम करने लगी है। इसी पैथी में डॉ. सतीश अरोरा ने स्पाइलर थेरेपी की खोज का दावा किया है। उनका कहना है कि मेरिडियन थेरेपी एक थकी हुई थेरेपी है, स्पाइरल थेरेपी मनुष्य के लिए वरदान है। उनका मानना है कि खिलाडि़यों को जो क्राइसिस मैनेजमेंट आस्ट्रेलियन थेरेपिस्ट साढ़े तीन घंटे में देते हैं, वह क्राइसिस मैनेजमेंट स्पाइरल थेरेपी से एक घंटा पांच मिनट में संभव है तथा इस थेरेपी से बड़े चिकित्सा संस्थानों से लौट चुके निराश मरीज़ों को शीघ्र लाभ पहुंचाया जा सकता है।
5. सिद्ध चिकित्सा पद्धति
यह चिकित्सा पद्धति मुख्य रूप से दक्षिण भारत ख़ासकर तमिलनाडु में अधिक प्रचलित है। वहाँ इसके अनेकों चिकित्सा संस्थान मिल जाएंगे। यह पैथी है तो आयुर्वेद की तरह लेकिन उससे थोड़ी भिन्न है। इसमें भी दवा के रूप में जड़ी-बूटियों का ही प्रयोग किया जाता है लेकिन इस पैथी में चिकित्सक के लिए दवाओं की जानकारी के साथ ही साधना भी ज़रूरी होती है। शायद इसीलिए इसे सिद्ध चिकित्सा पद्धति कहते हैं। इस पैथी का जनक अगस्त्य ऋषि को माना जाता है। यह पैथी योग विज्ञान व ऊर्जा के अधिक क़रीब है। यह सीधे ऊर्जा पर कार्य करती है और बीमारी दूर करने के साथ ही मनुष्य के आध्यात्मिक विकास का मार्ग भी प्रशस्त करती है।