जब किसी कारणवश हाथ की उंगलियाँ जल जाती हैं तो आनन-फानन में व्यक्ति अपने घर पर ही उसका तत्काल इलाज कर लेता है और उसके बाद चिकित्सक के पास जाता है। चिकित्सक आमतौर पर कुछ मलहम व दवाइयाँ दे देते हैं। जलन कम होने लगती है और धीरे-धीरे दर्द ग़ायब हो जाता है। एक समय के बाद उंगलियाँ ठीक हो जाती हैं। लेकिन कुछ मामलों में उंगलियाँ ठीक होने के बाद अपने मूल स्वरूप में नहीं आ पातीं और मुड़ी ही रहती हैं। इन्हें सीधा करने के लिए एलोपैथ में प्लास्टिक सर्जरी के अलावा कोई विकल्प नहीं है। लेकिन होम्योपैथ चमत्कार कर देता है। न सिर्फ़ जलकर मुड़ी उंगलियाँ अपने मूल स्वरूप में आ जाती हैं बल्कि पता भी नहीं चलता कि ये कभी जली भी थीं।
जलकर मुड़ी उंगलियाँ
जलने के बाद जब ऊपरी त्वचा पूरी तरह नष्ट हो जाती है और घाव पक जाता है तो इसे ठीक होने में समय ज़रूर लगता है लेकिन घाव ठीक हो जाता है। घाव ठीक होने के बाद भी निशान बने रहते हैं। यदि सामान्य जला हुआ है तो दाग़ कास्टीकम से चला जाता है लेकिन गहराई तक यदि जल गया है तो दाग आमतौर पर जाते नहीं। यदि जलने तुरंत बाद केंथिरिस का प्रयोग कर दिया जाए तो जलन भी तत्काल चली जाती है और अन्य कोई समस्या भी नहीं उठती।
होम्योपैथिक उपचार
मेरे बगल में एक बच्चे के हाथ की उंगलियाँ जल गई थीं। घाव ठीक हो गया था लेकिन निशान बाक़ी था। उसकी उंगलियाँ भी मुड़ी ही रहती थीं। एलोपैथ में प्लास्टिक सर्जरी की सलाह दी थी और बताया था कि इसके अलावा कोई विकल्प नहीं है। घाव ठीक हुए एक साल बीत गए थे। इसी बीच उन्हें किसी ने सलाह दे दी थी कि पहले होम्योपैथिक चिकित्सा कराकर देख लें, नहीं ठीक होगा तो प्लास्टिक सर्जरी कराएँ। उन्होंने उनकी बात मानकर एक होम्योपैथिक चिकित्सक से संपर्क किया।
चिकित्सक ने सबसे पहले उस बच्चे को ‘केन्थिरिस 1000‘ की दो खुराक आधे-आथे घंटे पर दो बार और ‘केल्लेरिया फ्लोर 30‘ व ‘कांस्टीकम 30‘ की दो-दो खुराक दिन मेँ दो-दो बार लेने के लिए 15 दिन की दवा दी। इससे अभूतपूर्व लाभ दिखाई दिया। जो मांसपेशियों के तंतु अकड़ गए थे, उनमें लचीलापन आने लगा। अकड़न कम होने से उंगलियों में थोड़ी सक्रियता भी बढ़ी। इसके बाद चिकित्सक ने ‘कांस्टीकम 1000‘ की दो खुराक आधे-आधे घंटे पर सप्ताह में केवल एक दिन और ‘केल्लेरिया फ्लोर 30‘ व ‘एन्टिम कूड 30‘ की दो-दो खुराक रोज लेने के लिए दिया। तीन माह तक दवा चली और अंगुलियाँ पूरी तरह चलने लगीं। उसे संचालित करने में जो कठिनाई थी वह ग़ायब हो गई थी और उस बच्चे को प्लास्टिक सर्जरी कराने से मुक्ति मिल गई।