अश्वगंधा शक्ति बढ़ाने वाली औषधि है। औषधियों में अश्वगंधा का पौधा नहीं बल्कि इसकी जड़ का प्रयोग किया जाता है। इसका स्वाद तीखा होता। सस्ती होने के नाते यह सभी के लिए सहज ही उपलब्ध है। इसकी जड़ कूटने पर इसमें घोड़े मूत्र की बू आती है, इसलिए इसे अश्वगंधा कहा जाता है। नागपुर में पैदा होने वाली असगंध को उत्तम माना जाता है। अश्वगंधा चूर्ण का सेवन शक्ति तो बढ़ाता ही है, पाचन क्रिया को भी दुरुस्त रखता है। मानसिक कमजोरी, पुराना सिर दर्द, नींद न आना, वहम, पागलपन जैसे रोगों की यह उत्तम दवा है। लेकिन अश्वगंधा का सेवन कैसे करें यह जानना भी अति आवश्यक है। बड़ों के लिए इसकी खुराक 2-4 ग्राम व बच्चों के लिये 1 ग्राम सुबह-शाम दूध के साथ देना चाहिए।

साथ ही साथ असगंध मर्दाना शक्ति में वृद्धि कर नपुंसकता को दूर करता है। शुक्राणुओं को बढ़ाता है। इसके सेवन से शारीरिक, मानसिक व स्नायुविक कमजोरी, विस्मरण, आंखों में गड्ढे पड़ जाना आदि रोग दूर हो जाते हैं। स्वप्नदोष व प्रमेह में लाभ होता है। गठिया, जोड़ों का दर्द विदा हो जाते हैं। रासायनिक विश्लेषकों के अनुसार सौ ग्राम अश्वगंधा में 789.4 मिलीग्राम लौह तत्व पाया जाता है। साथ ही मुक्त अमीनो अम्ल मिलता है जिससे खून में लौह तत्व बढ़ाने वाला टॉनिक बनाया जाता है।
अश्वगंधा चूर्ण के फायदे
– असंगध के सेवन से दुबले-पतले बच्चे मोटे-ताजे हो जाते हैं। वज़न बढ़ जाता है। इसका सेवन करने से दूध पिलाने वाली स्त्रियों के दूध में वृद्धि करता है।
– दुबले-पतले बच्चों को मोटा-ताजा बनाने के लिए दस-दस ग्राम असंगध चूर्ण, तिल व घी लें, उसमें तीन ग्राम मधु मिलाकर बच्चों को खिलाना चाहिए। इसका प्रयोग सर्दियों में करना श्रेष्ठ है।
– एक वर्ष तक असगंध का यथाविधि सेवन करने से शरीर रोग रहित हो जाता है। इसका ज्यादा प्रयोग सर्दियों में करना चाहिए।
– दिन में तीन बार 1-1 ग्राम अश्वगंधा चूर्ण लेने से हीमोग्लोबिन बढ़ता है। यह बालों को काला होने में मदद करता है तथा रक्त में वसा की मात्रा को नियंत्रित करता है।

– यदि कफ प्रकृति वाला व्यक्ति तीन ग्राम अश्वगंधा चूर्ण को गर्म प्रकृति वाली गाय के ताजे दूध से, वात प्रकृति वाले शुद्ध तिल से गर्म पानी के साथ एक वर्ष तक ले तो सभी व्याधियों का नाश हो जाता है और दुर्बलता दूर होती है।
– 20 ग्राम अश्वगंधा चूर्ण, 80 ग्राम तिल, 160 ग्राम उड़द मिलाकर बारीक पीसकर इसका एक-एक ग्राम का बड़ा बनाकर ताजा-ताजा खाने पर लाभ होता है।
– समान मात्रा में अश्वगंधा चूर्ण और चिरायता खरल कर रखें। दस-दस ग्राम सुबह-शाम खाने से अनेक व्याधियों का नाश होता है।
– गोमूत्र में अश्वगंधा की जड़ घिसकर लगाने से कंठमाला में लाभ होता है।
– बकरी के दूध के साथ इसका सेवन तपेदिक को ठीक करता है।
यौन दुर्बलता का इलाज
– अश्वगंधा के निरंतर सेवन से यौवन लंबे समय तक बना रहता है। स्नायु की कमजोरी, वात व सर्दी से उत्पन्न रोगों, पक्षाघात, कमर दर्द, अंग का सुन्न होना, शरीर पर चींटी के चलने जैसा महसूस होना, आदि रोग विदा हो जाते हैं।
– समान मात्रा में शतावर, अश्वगंधा, कूठ, जटामांसी व कटेहली का फल लें और उसे चार गुने दूध में मिलाकर या तेल में पकाकर लेप करने से लिंग मोटा होता है और उसकी लम्बाई भी बढ़ जाती है।

– छह-छह ग्राम अश्वगंधा का चूर्ण, मिसरी व मधु मिलाकर उसमें दस ग्राम गाय का घी मिला दें। सर्दियों में चार माह इसका नियमित करने से बूढ़ा व्यक्ति भी युवाओं जैसा प्रसन्न दिखेगा।
– तिल के तेल में कूटकटेरी, असगंध, वच व शतावरी को जलाकर लिंग पर लेप करने से लिंग में वृद्धि होती है।
– अश्वगंधा तेल की मालिश से सेक्स पॉवर में इजाफा होता है।
– दूध में 1 ग्राम अश्वगंधा चूर्ण व चौथाई ग्राम मिश्री उबालकर पीने से से वीर्य पुष्ट होता है और बल बढ़ता है।
– लिंग को मजबूत करने के लिए असगंध चूर्ण को चमेली के तेल मिलाकर लगाया जाता है।
– इसके नियमित सेवन से गर्भाशय के रोग तथा प्रसव के बाद की कमजोरी दूर हो जाती है। प्रदर रोग का यह उत्तम इलाज है। इसका लेप स्तनों पर करने से ढीले स्तन कड़े हो जाते हैं।
– इसके नियमित सेवन से बांझपन भी दूर होता है।
अश्वगंधा चूर्ण पतंजलि शॉप पर मिल जाएगा। खुला अश्वगंधा खरीदने से परहेज़ करना अच्छा है।