गुरुत्वीय तरंगों का अस्तित्व मिला, आइंस्टाइन की बात निकली सच

गुरुत्वीय तरंगों का अस्तित्व अभी कुछ दिनों पहले तक किताबी बात हुआ करती थी। सबसे पहले इस पर अपना पक्षा रखने वाले अल्बर्ट आइंसटाइन “Albert Einstein” भी इसकी पुष्टि नहीं कर सके। लेकिन 100 साल पहले उन्होंने जो विचार रखा, उसकी पुष्टि में लगे वैज्ञानिकों ने 14 सितम्बर 2015 को सुबह 09:50:45 पर लेज़र इंटरफ़ेरोमीटर ग्रेवीटेशनल-वेव ऑब्ज़र्वेटरी – लीगो “Laser Interferometer Gravitational-wave Observatory (LIGO)” में स्थापित दो डिटेक्टर्स की मदद से खोज लिया। यह ग्रैविटेशनल वेव्ज़ 1.3 अरब वर्ष पहले दो ब्लैक होल्स के संलयन से उत्पन्न हुई थीं। इस सफलता को लीगो के कार्यकारी निदेशक कालेक्स ने 11 फ़रवरी 2016 को पूरी दुनिया के सामने रखकर सभी को चौंका दिया।
गुरुत्वीय तरंगों का अस्तित्व

गुरुत्वीय तरंगों की संकल्पना

आज सभी गुरुत्वीय तरंगों के बारे में जानना और समझना चाहते हैं। तो मैं आपको बता दूँ बिल्कुल ठहरे पानी में कंकड़ मारने पर लहरों के उत्पन्न होने जैसा है। जिससे पानी की सतह पर तरंगों के कारण हलचल होने लगती है। अगर दूसरे उदाहरण से समझना है तो भूकम्प की संकल्पना कीजिए। जिसमें तरंगे केंद्र से बाहर की ओर फैलने लगती हैं और ऊपरी सतह पर स्थित हर वस्तु में हलचल पैदा कर देती हैं। 1916 में आइंसटाइन ने था कि अगर दो तारे आपस में टकराएँ तो उससे भी स्पेस-टाइम में ऐसी ही तरंगे उत्पन्न होंगी। लेकिन उस समय इन तरंगों की पुष्टि के लिए उपकरण और संसाधन नहीं थे।

स्पेस-टाइम का विचार

हम सभी टाइम और स्पेस को भली भाँति समझते और प्रयोग करते हैं लेकिन अगर स्पेस-टाइम को मिलाकर लिखें तो बात ज़रा-सी बदल जाती है। जी हाँ अगर मैं आपसे कहूँ कि आप मुझे पृथ्वी से सूरज के बीच की दूरी कितनी है तो इसका स्पष्ट उत्तर देने के लिए आपको गणना उन साढ़े आठ मिनट को भी शामिल करना होगा जितनी देर में सूर्य का प्रकाश पृथ्वी पर पहुँचता है। इसका अर्थ हुआ कि अगर हम सूरज और पृथ्वी के बीच कोई बड़ा पिंड आ भी जाए तो भी हमें सूरज दिखता रहेगा। यानि सूरज का दिखते रहना साढ़े आठ मिनट पुरानी बात है।
इसलिए स्पेस-टाइम को मिलाकर कुल चार दिशाएँ होती हैं और इसी के अनुसार गणना करने से अधिक सही परिणाम मिलते हैं। अगर एक झील की सतह को महज़ दो दिशाओं में लम्बाई और चौड़ाई में देखा जाए तो गुरुत्व का शक्तिशाली प्रभाव सतह पर हलचल उत्पन्न कर देगा।

गुरुत्वीय तरंगों की नाप

स्पेस-टाइम की गुरुत्वीय तरंग झील के पानी की सतह पर बनी तरंग और भूकम्पीय तरंग से कहीं अधिक कम्प्लेक्स होती है। पहली प्राब्लम, गुरुत्वीय तरंगों का फैलना-सिकुड़ना किसी कपड़े के फैलने सिकुड़ने के जैसा नहीं है। बस इतना समझ लीजिए कि स्पेस में हर चीज़ स्पेस-टाइम वेव्स के साथ ही फैलती सिकुड़ती है। इसलिए इसकी सही-सही नाप लेना सम्भव नहीं है। इस समस्या के हल के लिए प्रकाश की चाल को मेज़रमेंट के लिए चुना गया है क्योंकि प्रकाश की गति के समान रहती है। दूसरी प्राब्लम, गुरुत्वीय तरंगों का साइज़ था, एक सेंटीमीटर के एक अरबें हिस्से को अगर नाप सकें तभी गुरुत्वीय तरंगों का पता चल सकता है।

वैज्ञानिक दल

इस सफलता को प्राप्त करने में लगभग 900 वैज्ञानिकों को तीस साल में भी अधिक समय लगा। इस वैज्ञानिक टीम में 35 भारतीय भी शामिल हैं। हालाँकि इस प्रोजेक्ट को ज़्यादातर अमेरिकियों ने ही फ़ाइनेंस किया है।
खोज इतनी बड़ी है कि आगे के कुछ वर्षों में शायद भौतिकी की किताबों को दुबारा लिखने की ज़रूरत पड़ जाए। ब्रह्मांड की उत्पति से जुड़े कई रहस्य भी सामने आ जायेंगे। सामान्य शब्दों में अभी तक हमने जो पढ़ा और समझा है उसे आप चार्ली चैप्लिन की मूक फ़िल्म की तरह समझें। आगे का विज्ञान आज की टॉकीज़ की तरह होगा। हो सकता है आगे की पीढ़ियाँ हमारी आज की किताबें पढ़कर हँस दें।

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