हिस्टीरिया Hysteria एक तरह का मानसिक रोग है, यह स्त्रियों व पुरुषों दोनों में होता है। स्त्रियों को ज़्यादा होता है, ख़ासतौर से 20-25 साल की युवतियों को। केवल सेक्स के दमन से यह रोग नहीं होता, आमतौर पर लोग यही मान लेते हैं कि इसका कारण सेक्स का दमन है और इससे पीड़ित स्त्री और अधिक मानसिक दबाव में चली जाती, इससे रोग में वृद्धि ही होती है। हाँ सेक्स का दमन भी इसका एक कारण हो सकता है लेकिन इसके अलावा भी हिस्टीरिया के अनेक कारण हो सकते हैं।
हिस्टीरिया के लक्षण
इस रोग का कोई निश्चित लक्षण नहीं होता। अलग-अलग रोगी के शरीर में अलग-अलग लक्षण उत्पन्न होते हैं या एक ही रोगी के शरीर में अलग-अलग समय पर अलग-अलग लक्षण दिखते हैं। इस रोग का लक्षण रोगी की कल्पना पर आधारित होता है। साधारणतः रोगी अकारण हंसने या रोने लगता है। प्रकाश से चिढ़ता है, आवाज़ बर्दाश्त नहीं करता, सिर, छाती, पेट, रीढ़ तथा कंधों की मांसपेशियों में तेज़ दर्द होता है। सामान्यतया दौरे आने से पहले रोगी चीखता-चिल्लाता है, उसे लगातार हिचकियां आती हैं। बेहोशी की स्थिति में उसके दांत लग जाते हैं। इस रोग में मिर्गी के समान बेहोशी के दौरे आते हैं। इस रोग में कभी-कभी कुछ समय के लिए देखना और सुनना बंद हो जाता है। मुंह से बोल नहीं फूटते हैं। हाथ-पैरों में तेज़ कंपन और शरीर का कोई हिस्सा सुन्न हो सकता है। जब इसका दौरा पड़ता है तो रोगी असामान्य हरक़त करता है। दौरे पड़ने पर या उसके पूर्व स्त्री का जी मिचलाने लगता है। सांस असामान्य हो जाती है। हाथ-पैरों में अकड़न आ जाती है। मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है। चीखने-चिल्लाने के साथ ही पीड़ित स्त्री किसी को मार भी सकती है और ऐसा करते-करते वह अचानक ऐसे निढाल हो जाएगी जैसे उसकी शरीर में जान ही नहीं है। पेशाब बंद हो जाता है लेकिन बेहोशी समाप्त होने पर खुलकर पेशाब आता है।
दौरे के पूर्व के लक्षण
हिस्टीरिया का दौरा पड़ने के पूर्व छाती, सिर, पैर, पेट में दर्द, साँस लेने में कठिनाई, जंभाई, बेचैनी आदि होती है। लगता है गले में कुछ फंस गया है। शरीर छूने पर भी उसे दर्द का आभास होता है। लगता है पेट में गोला उठकर गले तक जा रहा है। दम घुटने लगता है, थकान, अधिक डकार आना, गर्दन में अकड़न, धड़कन असामान्य हो जाना व गला सूखना आदि इस रोग के दौरे के पूर्व लक्षण हैं।
हिस्टीरिया के कारण
इस रोग का मूल कारण चिंता है। सेक्स के दमन से उत्पन्न हुई चिंता के साथ वे सभी चिंताएं जो उसके जीवन को प्रभावित करती हैं। विवाह में देरी, पति का सेक्स में अक्षम होना, असमय पति की मृत्यु, गंभीर सदमा, बड़े पैमाने पर धन हानि, मासिक धर्म में दोष, संतानहीनता, पति द्वारा उपेक्षा आदि इसके कारण हो सकते हैं। आयुर्वेद के अनुसार ज्ञानवाही नाड़ियों में तमोगुण, वात तथा शुष्कता की वृद्धि हो जाने पर चेतना में शिथिलता आ जाती है, वह लगभग निष्क्रिय हो जाती है, इससे यह रोग उत्पन्न होता है।
हिस्टीरिया व मिर्गी के दौरे में अंतर
हिस्टीरिया व मिर्गी के दौरे में बहुत सामान्य अंतर होता है, इसलिए अक्सर लोग हिस्टीरिया को मिर्गी का दौरा समझ लेते हैं। मिर्गी में अचानक दौरा पड़ता है, रोगी के दांत लग जाते हैं जबकि हिस्टीरिया में अचानक दौरा नहीं पड़ता, दौरे के पूर्व अनेक लक्षण उत्पन्न होते हैं, रोगी को महसूस होने लगता है कि उसकी तबीयत ख़राब हो रही है, इसलिए वह कोई सुरक्षित स्थान देखकर लेट सकता है। उसके दांत लगने पर होंठ व जीभ दांतों के बीच में नहीं आती। दोनों के दौरे में हाथ-पैरों में अकड़न समान ही होती है। मिर्गी का दौरा थोड़े समय के लिए ही होता है जबकि हिस्टीरिया का दौरा कभी कम, कभी ज़्यादा देर तक हो सकता है।
हिस्टीरिया का दौरा आए तो क्या करें
– हिस्टीरिया का दौरा आने पर रोगी को आमतौर अमोनिया सुंघाया जाता है, लेकिन यह सुंघाने के बाद भी दुबारा दौरा पड़ सकता है। इसलिए रोगी को अकेले नहीं छोड़ना चाहिए। रोगी से बहुत बातचीत नहीं करनी चाहिए और उसके कपड़े ढीले कर देने चाहिए। उसके तलवों को मलें। यदि रोगी को कमज़ोरी महसूस हो रही है तो उसे चाय या कॉफ़ी पिला सकते हैं।
– दौरा पड़ने पर सबसे पहले उसे लिटा देना चाहिए। कमरे की खिड़कियां-दरवाज़े सब खोल दें ताकि शुद्ध हवा आ सके। मुंह पर ठंडे पानी के छीटें दें या उसके सिर पर तब तक पानी डालें जब तक वह होश में न आ जाए। होश में आने पर सहानुभूति पूर्वक उसके सिर पर हाथ फेरें। शर्बत, फलों के जूस या मीठा दूध पिला सकते हैं। माहौल को हल्का करने की कोशिश करें, संभव हो तो हास्यपूर्ण वातावरण बनाएं ताकि उसका दिमाग़ ख़ुशनुमा माहौल में विचरण करने लगे। इसके बाद रोगी को किसी मस्तिष्क रोग विशेषज्ञ या किसी अच्छे वैद्य से दिखाना चाहिए।
– हिस्टीरिया के रोगी को उसकी असामन्य हरक़तों की वजह से मारें नहीं, इससे उसे और मानसिक कष्ट हो सकता है।
– हिस्टीरिया के रोगी की इच्छाओं की पूर्ति कर उसे संतुष्टि प्रदान करना इस रोग का सबसे अच्छा इलाज है।
– जब हिस्टीरिया का दौरा पड़ने पर रोगी बेहोश जाए तो उसके अंगूठे के नाखून में अपने नाखून चुभोकर तथा चेहरे पर ठंडे पानी के छीटें मारकर उसे होश में लाने का प्रयास करना चाहिए। हींग तथा प्याज सुंघाने से भी लाभ मिलता है। बेहोशी की स्थिति में सबसे पहले रोगी की नाक में नमक मिला हुआ पानी डालना चाहिए।
हिस्टीरिया का उपचार
हिस्टीरिया से पीड़ित स्त्री को कुछ दिनों तक फल तथा बिना पकाया हुआ भोजन देना चाहिए।
– जामुन के सेवन से इस रोग में काफ़ी आराम मिलता है।
– हिस्टीरिया से पीड़ित स्त्री को प्रतिदिन 1 चम्मच शहद दिन में तीन समय चटाने से कुछ दिनों में यह रोग ठीक हो जाता है।
– एरंड के तेल में भुनी हुई छोटी काली हरड़ का चूर्ण 5 ग्राम प्रतिदिन लगातार देने से उसका उदर शोधन व वायु का शमन हो जाता है। सरसो, हींग, बालवच, करजबीज, देवदाख मंजीज, त्रिफला, श्वेत अपराजिता मालकंगुनी, दालचीनी, त्रिकटु, प्रियंगु शिरीष के बीज, हल्दी और दारुहल्दी को समान मात्रा में लें, उसे गाय या बकरी के मूत्र में पीस कर गोलियां बना लें और छाया में सुखा लें। इसके कुछ दिनों के सेवन से हिस्टीरिया ख़त्म हो जाता है।
– एक पुत्ती लहसुन छीलकर रख लें, उसे चार गुना दूध व चार गुना पानी मिलाकर धीमी आंच पर पकाएं। जब आधा दूध रह जाए तो उसे छान लें और रोगी को थोड़ा-थोड़ा पिलाते रहें।
– ब्रह्मी, जटामांसी शंखपुष्पी, असगंध और बच को समान मात्रा में पीस कर चूर्ण बना लें। एक-एक चम्मच दूध के साथ दिन में दो बार दें। इसके साथ ही सारिस्वतारिष्ट दो चम्मच, दिन में दो बार, पानी मिला कर पिलाएं। ब्राह्मी वटी और अमर सुंदरी वटी की एक-एक गोली सुबह तथा रात में सोते समय दूध के साथ सेवन करने से लाभ मिलता है। जो रोगी बालवच चूर्ण को शहद मिला कर लगातार सवा माह तक खाएं और भोजन में केवल दूध एवं छाछ का सेवन करे, उसका हिस्टीरिया शीघ्र दूर भाग जाता है।
– केसर, कज्जली, बहेड़ा, कस्तूरी, छोटी इलायची, जायफल और लौंग को समान मात्रा में मिलाकर 7 दिन तक सौंफ के काढ़े में मिलाकर रखें, इसके बाद उसे घोंटकर तैयार करें। इसकी इलायची के दाने के बराबर की गोलियां बना लें। 4-4 ग्राम सफेद मूसली तथा सौंफ के काढ़े से सुबह और शाम सेवन करना चाहिए। अगर मासिक धर्म में कोई विकार हो तो सबसे पहले ऊपर बताई गई दवा से इलाज करें।
– हिस्टीरिया के रोगी स्त्री को लगभग एक ग्राम के चौथाई भाग के बराबर लौह भस्म को एक चम्मच शहद में मिलाकर सुबह और शाम के समय में चटा दें और ऊपर से 10-12 ग्राम मक्खन तथा मलाई के साथ खिला दें। इसके साथ दाल, रोटी, दूध, मलाई, घी भी खिला सकते हैं।
– काले मुंह वाले बंदर की लीद इकट्ठा कर उसे छाया में सुखाकर पाउडर बना लें। जब दौरा पड़े तो मुंह का झाग आदि साफ़ कर उसे लगभग 2.5 ग्राम पाउडर में 8-10 ग्राम अदरक का रस मिलाकर पिला दें। दूसरे दिन ठीक उसी समय यह उपचार फिर करें। ऐसा निरंतर पांच दिन तक तक करें, हिस्टीरिया में लाभ होगा।
– रोगी को किसी ठंडे स्थान पर ले जाएं। ठंडे पानी से स्नान कराएं, इसके बाद उसे ऐसी जगह बैठाएं जहां शुद्ध हवा व पर्याप्त धूप मिल सके। उसे बार-बार पेशाब कराने की कोशिश करें। कोशिश करें कि उसकी सोच सकारात्मक बने। पीडि़त स्त्री को योग निद्रा का अभ्यास कराना चाहिए।
– हिस्टीरिया रोग में ताड़ासन, गर्भासन, उत्तानपादासन गोरक्षासन, कोनासन, भुजंगासन, शवासन, पद्मासन, सिंहासन तथा वज्रासन आदि का प्रयोग काफ़ी लाभ पहुंचाता है।