थायरॉयड की समस्या को नजरअंदाज न करें

मनुष्य की वर्तमान जीवन शैली ने अनेक समस्याओं को जन्म दिया है। इसमें से एक है थायरॉयड की समस्या । भागदौड़ की ज़िंदगी में लगातार बढ़ रहा तनाव, उपभोक्तावाद की दौड़ में बहुत सी इच्छाओं की पूर्ति न कर पाने की विवशता और न कर पाने के चलते हीन भावना से ग्रसित होना, सुरक्षा, सामाजिक, पारिवारिक व व्यक्तिगत चिंताएं, आदि तमाम कारण हैं थायरॉयड के बढ़ने के। यदि जीवन में केवल आराम है तो हाइपो थायरॉयड से व्यक्ति जूझता है। अधिक काम से उत्पन्न तनाव से हाइपर थायरॉयड की समस्या उत्पन्न होती है। हाइपर थायरॉयड में यह ग्रंथि अधिक कार्य करने लगती है जो जीवन के लिए ख़तरनाक होता है।

हाइपर थायरॉयड की समस्या

यदि जीवन में संतुलन बना लिया जाए और चिंताओं के कारण को ख़त्म कर दिया जाए तो इस रोग से काफ़ी हद तक मुक्ति पाई जा सकती है। यदि एक-आध घंटे योगासन या व्यायाम करें तो काफी लाभ हो सकता है, लेकिन एक घंटे व्यायाम के बाद यदि पूरे दिन बिस्तर पर लेटे रहे तो पूरी मेहनत बेकार जाएगी। यदि सुबह व्यायाम कर लिया और दिन भर ऊंची तकिया लगाकर सोए, टीवी देखे या किताब पढ़े तो पीनियल व पिट्यूटरी ग्रंथियों के कार्य प्रभावित होते हैं, जिनका परोक्ष रूप से थायरॉयड पर असर पड़ता है। इस स्थिति में हाइपोथायरॉयड होने की आशंका बलवती हो जाती है। शुरुआत में ही जब गर्दन में कोई छोटी गांठ दिखे, इसका इलाज तुरंत करा लेना चाहिए, बाद में यह भयानक रूप ले लेती है। बढ़ी हुई थायरॉयड ग्रंथि (घेंघा) को थायरॉयडिस कहा जाता है। इससे थायरॉयड हार्मोन बनाने की क्षमता में ह्रास होता है।
थायरॉयड ग्रंथि के साथ ही पैराथायरॉयड ग्रंथि होती है, जो थायरॉयड से छोटी होती है। यह ग्रंथि दांत व हड्डियों को बनाने में मदद करती है। कैल्शियम व विटामिन डी इस ग्रंथि को अपना कार्य करने में सहयोग प्रदान करते हैं। इससे जो संप्रेरक पैदा होता है, उसकी कमी से ख़ून में कैल्शियम की मात्रा बढ़ जाती है और उसके गुर्दों में जमा होने की आशंका बलवती होती है। जब भी इसके लक्षण नज़र आएं, इन्हें नज़रअंदाज न करें, तत्काल किसी योग्य चिकित्सक से परामर्श लेना चाहिए।

क्या है थायरॉयड

थायरॉयड एक ग्रंथि है जो गर्दन के सामने सांस नली के ऊपर नासिका के दोनों तरफ़ दो भागों में होती है। सामान्य स्वस्थ मनुष्य में इस ग्रंथि का वज़न 25 से 50 ग्राम तक होता है। “थायराक्सिन” नामक हार्मोन का स्राव इस ग्रंथि से होता है। यह हार्मोन रोज़ खर्च होने वाली ऊर्जा, प्रोटीन उत्पादन एवं अन्य हार्मोन के प्रति संवेदना को नियंत्रित करता है। यह ग्रंथि शरीर के मेटाबॉल्ज़िम को नियंत्रित करती है, अर्थात्‌ जो भोजन हम लेते हैं उसे ऊर्जा में बदलने का काम करती है। साथ ही हृदय, मांसपेशियों, हड्डियों व कोलेस्ट्राल को भी प्रभावित करती है। पैराथायरॉयड ग्रंथियां, थायरॉयड ग्रंथि के ऊपर एवं मध्य भाग की ओर कुल चार जोड़े में होती हैं, जिनसे “पैराथारमोन” हार्मोन निकलता है।

थायरॉयड की समस्या के कारण

  1. सोया प्रोटीन, कैप्सूल, पाउडर के रूप में सोया उत्पादों का ज़रूरत से अधिक इस्तेमाल थायरॉयड को जन्म दे सकता है।
  2. दवाओं के प्रतिकूल प्रभाव से भी थायरॉयड की समस्या हो सकती है।
  3. आयोडीन की कमी या अधिक प्रयोग भी थायरॉयड का कारण हो सकता है।
  4. ज़्यादा आलस्य से जब पिट्यूटरी ग्रंथि प्रभावित हो जाती है तो थायरॉयड ग्रंथि को हार्मोन उत्पादन का संकेत नहीं दे पाती, इस वजह से भी थायरॉयड हो सकता है।
  5. छाती, सिर, गर्दन की विकिरण थेरेपी, टांसिल्स, लिम्फ़ नोड्स, थाइमस ग्रंथि की समस्या, मुहांसे का विकिरण उपचार भी थायरॉयड को जन्म देता है।
  6. थायरॉयड का सबसे बड़ा कारण ग्रेव्स रोग है। यह रोग ज़्यादातर 20 से 40 वर्ष की उम्र के बीच की महिलाओं को होता है। यह अनुवांशिकी व वंशानुगत कारणों से होता है।
  7. स्त्रियों में थायरॉयड की समस्या गर्भावस्था के दौरान होने वाले तनाव से भी हो सकती है।
  8. मासिक धर्म में होने वाले हार्मोनल परिवर्तन भी थायरॉयड के कारण बनते हैं।

थायरायड के लक्षण

गले में अचानक सूजन उत्पन्न हो जाना, बालों का झड़ना थायरॉयड की समस्या की तरफ़ इशारा करता है। हाइपो या हाइपर दोनों ही स्थिति में बाल झड़ने लगते हैं। स्त्रियों के मासिक चक्र में परिवर्तन आदि इसके लक्षण हो सकते हैं।

हाइपो थायरॉयड के लक्षण

बेवजह वज़न में वृद्धि, आवाज़ में भारीपन, थकान, नींद की अधिकता, भूख की कमी, गर्दन, सिर में दर्द, बच्चों की लंबाई न बढ़े और मोटापा बढ़ता जाए, चेहरे पर सूजन, ठंड लगना, त्वचा का सूखना, कब्ज़, जोड़ों में दर्द आदि।

हायपर थायरॉयड का लक्षण

भूख अधिक लगना, इस रोग में थायरॉयड ग्रंथि के कार्य करने प्रवृत्ति अधिक हो जाती है। चयापचय बढ़ जाता है, इससे भूख अधिक लगती है। भरपूर भोजन करने के बाद भी वज़न घटता जाता है। मानसिक तनाव इसका प्रमुख कारण है। ख़ून में कोलेस्ट्राल कम हो जाता है। हृदय की धड़कनें तेज़ चलने लगती हैं। बेवजह पसीना आना, आंखों की चौड़ाई व गहराई बढ़ने के साथ ही नाड़ी तेज़ चलने लगती है। उसका स्पंदन 70 से 140 तक बढ़ जाता है।

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