गर्भावस्था में मुख्यत: मिचली आना, उल्टी होना, स्तनों में हल्का दर्द बना रहना, बार-बार पेशाब आने आदि की समस्याएं आमतौर पर होती हैं। चूंकि हर माह स्त्री को माहवारी से गुज़रना पड़ता है। गर्भधारण करने के बाद माहवारी बंद हो जाती है, जिसकी वजह से ये समस्याएं आने लगती हैं। इन समस्याओं को लेकर जब गर्भवती महिलाएं चिकित्सक के पास जाती हैं तो चिकित्सक पेट व योनि की जांच करने के साथ ही बच्चेदानी की ऊंचाई भी देखती हैं। गर्भधारण के बाद बच्चेदानी का बाहरी भाग मुलायम हो जाता है। यह मां बनने का संकेत है। हालांकि चिकित्सक इन लक्षणों को पुष्ट करने के लिए मूत्र व ख़ून की जांच भी करवाती हैं। माहवारी बंद होने के दो सप्ताह बाद जांच कराई जाती है, इससे स्थिति एकदम स्पष्ट हो जाती है।
गर्भावस्था में सावधानियां
– माहवारी बंद होने पर अपने मन से किसी दवा का सेवन न करें। किसी भी दवा का सेवन करने से पूर्व चिकित्सक से परामर्श अवश्य लें।
– गर्भधारण के बाद रहन-सहन व खान-पान पर विशेष ध्यान दें।
– यदि शुगर की समस्या है तो नियमित उसकी जांच कराते रहें और चिकित्सक से परामर्श लेते रहें।
– सांस की शिक़ायत, टीबी या मिर्गी की बीमारी से यदि महिला पीड़ित है तो गर्भधारण के बाद चिकित्सक को यह बात बता देनी चाहिए।
– सकारात्मक विचार रखें, तनाव को स्वयं से दूर रखें, क्योंकि स्वस्थ मन व विचार का असर होने वाले बच्चे पर पड़ता है।
– हमेशा प्रसन्न रहें, बेडरूम में अच्छी तस्वीरें लगाएं, डरावने पिक्चर या धारावाहिक देखने से बचें।
– नियमित रूप से स्त्रीरोग विशेषज्ञ की निगरानी में रहें।
– गर्भधारण के समय ब्लड ग्रुप विशेषकर आरएच फ़ैक्टर व हीमोग्लोबीन की जांच करा लेनी चाहिए।
– शुगर, ब्लडप्रेशर, थाइराइड आदि की समस्या है तो गर्भावस्था के दौरान चिकित्सक से परामर्श लेकर इन्हें नियंत्रण में रखें।
Precautions during pregnancy
– शुरुआत में जी घबराना, उल्टियां होना या थोड़ा ब्लडप्रेशर बढ़ जाना स्वाभाविक है, लेकिन यह ज़्यादा बढ़े ता तत्काल चिकित्सकीय परामर्श लेना चाहिए।
– यदि पेट में अचानक तेज दर्द व योनि से रक्तस्राव होने लगे तो तत्काल चिकित्सक के पास जाएं।
– बिना चिकित्सक की जानकारी के न तो कोई दवा खाएं और न ही पेट की मालिश कराएं।
– चिकित्सक से मिलकर गर्भावस्था के आवश्यक टीके लगवाएं और आयरन की गोलियों का सेवन करें।
– इस अवस्था में यदि मलेरिया हो जाए तो तत्काल चिकित्सक को बताएं।
– चेहरे या हाथ-पैर में असामान्य सूजन, तेज़ सिर दर्द, धुंधला दिखना और पेशाब में कठिनाई आदि की समस्या आए तो तुरंत चिकित्सक से संपर्क करें। इन्हें गंभीरता से लें, ये ख़तरे के लक्षण हो सकते हैं।
– यदि गर्भस्थ शिशु की हलचल कम दिखे तो तत्काल चिकित्सक को बताएं। उसकी हलचल जारी रहनी चाहिए।
– गर्भधारण व प्रसव के बीच में महिला के वज़न में कम से कम दस किलो की वृद्धि अवश्य होनी चाहिए।
– न तो अधिक कसा हुआ और न ही अधिक ढीले वस्त्र पहनने चाहिए। ऊंची एड़ी की सैंडल भी पहनने से बचें।
– ज़्यादा श्रम वाला कार्य करने से बचें। हल्का-फुल्का सामान्य घरेलू कार्य अवश्य करते रहें।
– आठवें, नवें माह के दौरान सफ़र से बचें। बहुत ज़रूरी हो तो निजी वाहन से सफ़र करें।
– सुबह-शाम थोड़ा पैदल ज़रूर टहलें, प्रसव के लिए अस्पताल का चयन श्रेयष्कर है।