किसी भी बीमारी में और चिकित्सा पद्धति में लक्षणों का महत्वपूर्ण योगदान है। लक्षणों के आधार पर ही चिकित्सा कारगर होती है। लेकिन होम्योपैथी एक ऐसी चिकित्सा पद्धति है जिसमें लक्षणों को अनदेखा किया गया तो बीमारी में अपेक्षाकृत सुधार संभव नहीं होता है। एक ही बीमारी में विभिन्न लक्षणों के आधार पर एक ही औषधि की अलग-अलग मात्रा अथवा अलग-अलग औषधियों का प्रयोग किया जाता है। इस होम्योपैथिक उपचार में लक्षणों का जितना अध्ययन होगा, औषधि उतनी ही कारगर होगी। आमतौर पर एक ही बीमारी के बारे में रोगी एक ही परेशानी को अलग-अलग शब्दों में बताते हैं, इसलिए ज़रूरी है कि उनके शब्दों पर ध्यान न देकर उनके भावों को केंद्र में रखकर बीमारी के बारे में अध्ययन किया जाए।
होम्योपैथिक उपचार और लक्षण
होम्योपैथिक उपचार में केवल किताबों का अध्ययन बहुत ज़्यादा काम नहीं आता है, इसमें अनुभव का बड़ा महत्व है। यह अनुभव स्वयं के प्रैक्टिस से तो आता ही है, अपने से वरिष्ठ होम्योपैथ चिकित्सकों के पास बैठने से उनका अनुभव भी सीखने को मिलता है। सारा ज्ञान किताबों से ले लिया और सभी डिग्री हासिल कर ली लेकिन जब मरीज़ सामने आएगा और एक ही बीमारी के कई लक्षण बताएगा तो दिमाग़ चकरा जाएगा, ऐसे में अनुभव काम आता है, यह अनुभव ही मरीज़ की मनोदशा समझने में मदद करता है।
मैं बताऊं कि एक वरिष्ठ चिकित्सक ने एक कैंसर के पेसेंट को बहुत हल्की व सामान्य दवा दी। उसके बहुत सारे लक्षण थे। उसे खाने में क्या पसंद है, कहां सोता है, मीठा या नमकीन क्या पसंद करता है, सुबह कब उठता है और न जाने क्या-क्या करता है आदि बहुत सारी बातें उससे पूछी। बताते-बताते उसने रो दिया था और चिकित्सक ने उसे इसी लक्षण पर दवा दे दी थी कि उसने बताते-बताते रो दिया। यह चर्चा इसलिए कर रहा हूं कि सामान्य से सामान्य लक्षण के पीछे भी कोई न कोई गहरी बात छिपी होती है जो अनुभव से समझ में आती है।
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मरीज़ के साथ पूछताछ
हो सकता है कि आपने रोगी से पूछा कि आपको प्यास कैसी लगती है। उसने तेज़ प्यास, कम प्यास या कभी-कभी प्यास लगने की बात बताई। यदि रोगी ने कहा कि मुझे बहुत प्यास लगती है, इसका सीधा अर्थ हुआ कि कि रोगी के पेट में खुश्की है। आंते उचित मात्रा में श्राव नहीं बना रही हैं। यदि वह कहता है कि मुझे प्यास बहुत कम लगती है तो मतलब हुआ कि उसकी आंतों में गीलापन अधिक है। यदि वह कहता है कि मुझे थोड़े-थोड़े समय पर प्यास लगती है तो इसका अर्थ हुआ कि उसके पेट में न केवल खुश्की है वरन ताप भी अधिक है। इसी तरह भूख से जिगर का कार्य, पाखाने से आमाशय और आंतो का कार्य तथा नींद से नर्वस सिस्टम के कार्य के बारे में पर्याप्त जानकारी हासिल की जा सकती है।
सही इलाज के लिए सही लक्षण
यदि लक्षण पकड़ में आ गए तो समझिए कि रोग पकड़ में आ गया। क्योंकि बुखार तो एक जैसा ही होता है लेकिन लक्षणों के आधार पर उसकी अलग-अलग औषधि हो जाती है। यदि लक्षण में थोड़ी सी चूक हुई तो बीमारी ठीक नहीं होगी। इसलिए होम्योपैथिक उपचार में लक्षणों का को समझना बहुत ज़रूरी होता है। किंतु तीव्र रोगों में सदा ही यह कर पाना संभव नहीं होता है। ऐसे में जो सबसे अधिक कष्टदायक लक्षण होते हैं, उसी के आधार पर तत्काल औषधि प्रदान की जाती है। जैसे तीव्र ज्वर, तीव्र पीड़ा, बार-बार दस्त होना आदि। ऐसे रोगों में सबसे पहले इन्हें दूर करना प्राथमिकता होती है। जब रोगी थोड़ा सामान्य हो जाए तब उसकी बीमारी के मूल लक्षणों को पहचानकर उसका उपचार करना चाहिए।