पैर की नस का सिकुड़ना आमतौर पर सामान्य बीमारी नहीं है। यह किसी-किसी को होती है। लेकिन जिसे हो जाती है, वह लाख दवा कराए, यह पूरी तरह ठीक होने का नाम नहीं लेती है और दर्द बना रहता है। लेकिन होम्योपैथ में इसका कारगर इलाज है, यदि समय से सही लक्षणों के आधार पर उपचार किया गया तोय यह बीमारी जड़ से ठीक हो जाती है।

पैर की नस सिकुड़ने का अनुभव
एक दस वर्ष का लड़का था जिसके घुटने के ऊपर एक फोड़ा हो गया था जो खिसकते-खिसकते घुटने के नीचे की तरफ़ पोप्लीटियल फोसा में आ गया और उसने मुख्य टेंडन पर स्थित होकर उसे सिकोड़ना शुरू कर दिया। स्थिति यह आ गई कि उसका पंजा पूरा ज़मीन पर नहीं पड़ता था। चलने के लिए उसे लाठी का सहारा लेना पड़ता था। चिकित्सकों ने उसे सर्जरी कराने की सलाह दी थी और उसका परिवार दिल्ली जाने वाला था। इसी बीच उसके पिता की एक होम्योपैथिक चिकित्सक से भेंट हो गई और थोड़े से प्रयासों से ही यह रोग विदा हो गया। उन्होंने उसे “कास्टीकम” दिया। कुछ ही दिनों के प्रयोग लड़के का पैर खुलने लगा और पंजा ज़मीन को छूने लगा।
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हालांकि यह कहने का क़तई मतलब नहीं है कि ऐसी कोई समस्या दिखे तो आप बाज़ार से कास्टीकम ख़रीद लाएं और किसी को दें, जब भी इस तरह की समस्या आए तो किसी योग्य चिकित्सिक की सलाह पर ही दवा दें, उनसे परामर्श लेने के बाद ही दवा का प्रयोग करें। यह उदाहरण इसलिए दिया गया है कि ताकि आपको भरोसा हो सके कि होम्योपैथ में बहुत सी ऐसी बीमारियों की दवाएं उपलब्ध हैं जिन्हें एलोपैथ सर्जरी की सलाह देता है। यदि योग्य व कुशल चिकित्सक के हाथ में आप आ गए तो बिना सर्जरी के अनेक बीमारियां ठीक हो सकती हैं। गंभीर से गंभीर बीमारियां भी मीठी गोली से ठीक होती देखी गई हैं जिनका बिना आपरेशन के कोई और उपाय नहीं था।
विशेष सावधानी
होम्योपैथ में चिकित्सक द्वारा बताए गए परहेज़ पर विशेष ध्यान देना चाहिए। यदि परहेज़ पूरा नहीं हो पा रहा है तो औषधि पूरा काम नहीं करेगी और समय अधिक लगेगा। इससे होम्योपैथ पर से धीरे-धीरे विश्वास भी उठने लगता है। इसके अलावा इसमें जो सबसे बड़ी सावधानी की ज़रूरत है, वह यह है कि जब आप किसी एक चिकित्सक को दिखा रहे हैं और उससे थोड़ा-बहुत आराम है तो इस बीच किसी अन्य चिकित्सक की बात में न आएं और उसे दूसरी दवा न दें।
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ऐसा ही उस लड़के के साथ भी हुआ। जब उसका पंजा ज़मीन को छूने लगा तो इसी बीच एक अन्य चिकित्सक से उसके पिता की भेंट हो गर्इ और उन्होंने उसे “रसटाक्स 1000” की दवा दे दी। अब स्थिति पहले से भी ख़राब हो गई। पहले उसका पंजा ज़मीन से मात्र 15 सेमी ऊपर उठता था जो पहली दवा से ज़मीन छूने लगा था, रसटाक्स खाने के बाद उसका पंजा 25 सेमी ज़मीन से ऊपर खिंच गया। हालांकि बाद में पुन: पहले चिकित्सक ने रसटाक्स को एंटीडोट कर फिर से कास्टीकम देना शुरू किया, थोड़ी पोटेंसी भी बढ़ाई और धीरे-धीरे उसकी बीमारी विदा हो गई। उसका पंजा आराम से ज़मीन को छूने लगा और आराम से बिना लाठी के सहारा के पैदल चलने लगा।