आंतों के सिकुड़ने की होम्यौपैथ में बहुत ही कारगर दवा है। आंतें जब सिकुड़ने लगती हैं तो उल्टी शुरू हो जाती है। कुछ भी लेने पर आंतों में जाता नहीं है। ऐसी स्थिति में जीवन रक्षा के लिए रोगी को पोषक तत्व नसों के ज़रिये दिए जाते हैं। क्योंकि जब आंतों में जाएगा नहीं तो पचेगा नहीं, जब पचेगा नहीं तो भोजन रस, रक्त आदि में परिवर्तित नहीं होगा और धीरे-धीरे कमजोरी आने लगेगी। एक दिन ऐसा आएगा जब वह मृत्यु शैय्या पर होगा और केवल प्रतीक्षा शेष रह जाएगी।
एलोपैथ में इसका एकमात्र इलाज ऑपरेशन है। लेकिन ऑपरेशन के बाद यह समस्या दूसरी जगह पैदा नहीं होगी, इसकी कोई गारंटी नहीं। ऑपरेशन कराते जाएं, समस्या अपना स्थान बदलती रहेगी, कुल मिलाकर जिसकी आंतों में सिकुड़ाव शुरू हुआ वह धीरे-धीरे मृत्यु के मुंह में सरकता चला जाता है।
आंतों के सिकुड़ने की दवा
लेकिन होम्योपैथ में आंतों के सिकुड़ने की कारगर दवा है। जिसका नाम है- ‘बेरायटा कार्ब1000’, ‘फायटालेक्का30’ व ‘इपीकाक 30’। रोगी की स्थिति यदि गंभीर है और आंतों के सिकुड़ने पर हो ही जाती है तो ‘बेरायटा कार्ब1000’ की दो खुराकें व ‘फायटालेक्का30’ व ‘इपीकाक 30’ की दो-दो खुराके देना चाहिए। इससे उल्टियां तत्काल बंद हो जाती हैं और धीरे-धीरे आंतों का सिकुड़ाव कम होने लगता है। कुछ ही दिन में रोगी स्वत: कुछ खाने की इच्छा जाहिर करेगा। जैसे-जैसे आंतें ठीक होने लगेंगे, भोजन पचने लगेगा और कुछ ही दिन में रोगी निरोग हो जाएगा।
इसका प्रत्यक्ष उदाहरण मेरे सामने घटा। रेलवे में कार्यरत एक व्यक्ति के पिता की आंतों में सिकुड़ने की समस्या सामने आई। आमतौर पर जैसा होता है कि लोग नर्सिंग होम में भागते हैं। वह भी गए। डाक्टर ने ऑपरेशन की सलाह दी। उन्होंने सवाल किया कि क्या ऑपरेशन के बाद दूसरी जगह यह समस्या नहीं हो सकती। डाक्टर ने कहा कि इसकी कोई गारंटी नहीं। वह निराश हो गए।
अपने एक मित्र की सलाह पर शहर के एक वरिष्ठ होम्योपैथिक चिकित्सक डॉ० रूप कुमार बनर्जी के पास गए। उनके पिता की अवस्था बहुत भी बहुत ज्यादा थी, वे बिल्कुल दुबले-पतले हो गए थे। कुछ भी खाते थे, उल्टी हो जाती थी, कुछ भी अंदर नहीं जा पाता था। उन्हें जीवन रक्षा के लिए पोषक तत्व नसों के द्वारा दिए जा रहे थे। इसके साथ ही उन्हें मधुमेह भी था। होम्योपैथिक चिकित्सक ने उन्हें ‘बेरायटा कार्ब 1000‘ की दो खुराकें व ‘फायटालेक्का 30‘ व ‘इपीकाक 30‘ की दो-दो खुराकें देना शुरू किया। दूसरे दिन उनकी उल्टियां बंद हो गईं और तीसरे दिन से वह कुछ तरल पदार्थ लेने लगे। मात्र दो सप्ताह लगा वे चंगा हो गए। उनका वजन भी तीन किलो बढ़ गया।