दमा रोग बहुत जानलेवा होता है। जिसको हो जाता है ज़िंदगी भर उसकी साथ-संगत हो जाती है। सांसें फूलने लगती हैं, सांस लेने में तकलीफ़ इस क़दर होती है कि कृत्रिम ऑक्सीजन न ले तो जान चली जाए। एलोपैथ में दवा तो है लेकिन ज़िंदगी भर खानी पड़ती है। कभी-कभी ठीक भी हो जाता है तो कुछ दिन बाद पुन: उभर जाता है। थोड़ा सा भी मौसम तब्दील नहीं हुआ कि दमा ने दस्तक दे दी। खासकर ठंडी का सीजन तो दमा के मरीजों का दुश्मन होता है। लेकिन होम्योपैथ की कुछ दिन नियमित दवा करने से यह रोग जड़ से चला जाता है, चूंकि होम्योपैथ भी एक प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति है, इसलिए इसका शरीर पर कोई दुष्प्रभाव भी नहीं होता। आज हम होम्योपैथ में दमा के इलाज की चर्चा करेंगे।
दमा रोग केस स्टडी
रामनरेश कुशवाहा एक छोटे व्यापारी हैं। उनको दमा रोग हो गया था। बहुत जगह उन्होंने दवा कराई लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ। घर के बहुत संपन्न नहीं थे फिर भी जहां लोगों ने बताया कि उन्होंने जाकर इलाज कराया। दिल्ली और पूना तक गए। हर जगह उन्हें दवा दी जाती रही और वह खाते रहे, आराम भी होता था लेकिन जब भी दवा छूटी तो फिर दमा ने चुनौती दे दी। उन्हें अब लगने लगा था कि दमा उनका साथ कभी नहीं छोड़ेगा। हमेशा इन्हेलर सूंघते रहते थे। उनके एक परिचित होम्योपैथ चिकित्सक थे, जो उनके ही मुहल्ले में रहते थे। छोटी-मोटी बीमारियां वह ठीक भी कर देते थे।
उनके पास कोई डिग्री तो नहीं थी लेकिन किताबें पढ़कर उन्होंने होम्योपैथ की अच्छी-खासी जानकारी हासिल कर ली थी। उन्होंने उनसे अपनी बात कही तो उन्होंने किताब खोलकर कई नुस्खे निकाले, लक्षण मिलाए और फिर दवा बनाकर दी। उन्हें सेनेगा, आर्स एल्व, इपीकाक, स्पोंजिया आदि दवाएं देना देना शुरू किया। कुछ लाभ भी हुआ लेकिन चेहरा नीला पड़ने लगा और पसीने बहुत आने लगे। तब उन्हीं की सलाह पर उन्होंने वरिष्ठ होम्योपैथिक चिकित्सक डॉ० रूप कुमार बनर्जी को दिखाया। उन्होंने सिर्फ ‘नक्स मॉस्कैंटा 30’ दवा बढ़ा दिया। जब काफी लाभ हो गया तो उन्होंने कार्बो वेज देना शुरू किया और दमा चला गया, फिर कभी नहीं हुआ।
चिकित्सक परामर्श
डॉ० रूप कुमार बनर्जी ने कहा कि इस तरह की बीमारी में कभी भी अपने हाथ से दवा नहीं लेनी चाहिए। गलत दवा नुकसान पहुंचा सकती है। योग्य चिकित्सक के हाथ से वही दवा अमृत हो सकती है और अयोग्य चिकित्सक के हाथ से वही दवा विष का काम कर सकती है। इसलिए जब भी किसी तरह की शिकायत हो तो तुंरत विशेषज्ञ से सलाह लेनी चाहिए।