खाने पीने की ग़लत आदतें, अव्यवस्थित जीवनशैली, संक्रमित जल और वायु प्रदूषण के कारण किडनी रोग बढ़ने लगे हैं। जिसके लिए डॉक्टर कई बार डायलिसिस करवाते हैं और रोग गंभीर जाए तो किडनी दान लेने की नौबत भी आ जाती है। हमारे शरीर में गुर्दों का काम ख़ून साफ़ करना है, जिससे शरीर से विषैले पदार्थ बाहर निकल जाते हैं। ऐसा होने की वजह से ही हम स्वस्थ रहते हैं। किडनी के ठीक से काम करने के कारण उसमें इंफ़ेक्शन हो जाता है, जिससे दूसरी बीमारियाँ भी घर कर सकती हैं। इस आलेख में किडनी इंफ़ेक्शन, किडनी फ़ेलियर और किडनी डैमेज होने के कारण, लक्षण और उपचार के घरेलू और आयुर्वेदिक उपचार जानेंगे।
गुर्दे का काम – किडनी फ़ंक्शन
शरीर में ख़ून साफ़ करना, नया ख़ून बनाना, ब्लड प्रेशर, ब्लड सेल्स, पानी और कैल्शियम का बैलेंस बनाए रखना किडनी का काम है। किडनी ख़ून साफ़ करके उसमें मौजूद विषैले पदार्थों को पेशाब के रास्ते से शरी से बाहर निकाल देती है। लाल रक्त कणिकाओं को बनाने वाले हार्मोन को सुचारु बनाए रखना भी गुर्दों का काम है।
किडनी रोग होने के कारण
– कम पानी पीना
– कोल्ड ड्रिंक पीना
– पेशाब रोकना
– पूरी नींद न लेना
– ज़्यादा नमक खाना
– स्मोकिंग और मद्पान करना
– खाने में वाइटमिन और मिनिरल्स की कमी
अगर घर में किसी सदस्य को डायबिटीज़, हाई ब्लड प्रेशर या किडनी रोग पहले रहा हो, तब आनुवांशिक कारणों से अन्य सदस्यों को भी किडनी ख़राब होने का डर रहता है।
गुर्दे ख़राब होने के लक्षण
गुर्दे ख़राब होने लगें तो मूत्र त्याग के समय दर्द होता है और रक्त भी आ सकता है। इसके अलावा और भी लक्षण हो सकते हैं –
– ठंड लगना
– भूख कम लगना
– शरीर में सूजन आना
– शरीर में थकान और कमज़ोरी आना
– पेशाब में प्रोटीन अधिक हो जाना
– पेशाब के समय जलन होना
– ब्लड प्रेशर बढ़ जाना
– त्वचा पर चकते पड़ना और खुजली होना
– मुंह का स्वाद ख़राब होना और मुंह से बदबू आना
किडनी फ़ंक्शन की जांच
किडनी टेस्ट से ख़ून में क्रीअटनीन और यूरिया की मात्रा का पता लगाया जाता है। इससे किडनी की कार्य क्षमता का पता चलता है। किसी बीमारी की वजह से यदि गुर्दे ठीक से काम न करें तो शुरुआती जांच में इस बात का पता नहीं चल पाता है। जब दोनों गुर्दे 50 प्रतिशत से अधिक ख़राब हो जाए तब ब्लड में क्रीअटनीन _ Creatinine और यूरिया का स्तर बढ़ जाता है।
किडनी फ़ेलियर के कारण
अगर शरीर का एक गुर्दा ख़राब हो और ऑपरेशन करके उसको निकाल दिया जाए तो दूसरा गुर्दा अपनी कार्य क्षमता को बढ़ा लेता है और पूरा काम करता है। किडनी फ़ेलियर की नौबल तब आती है जब दोनों गुर्दे काम करना बंद कर दें। किडनी फ़ेलियर दो तरह का होता है – 1. एक्यूट और 2. क्रोनिक
1. एक्यूट किडनी फ़ेलियर
जब किसी बीमारी की वजह से दोनों गुर्दों को नुक़सान पहुंचता है और वो काम करना बंद कर देते है। अगर बीमारी को पकड़ लिया जाए और उसका सही इलाज करा लिया जाए तो किडनी वाप सही फ़ंक्शन करने लगती है। एक्यूट किडनी फ़ेलियर में मरीज़ को दवाइयाँ और परहेज़ करना होता है। कभी कभार मरीज़ को डायलिसिस पर भी रखना पड़ सकता है।
2. क्रोनिक किडनी फ़ेलियर
जब बीमारियों के कारण दोनों गुर्दे धीरे धीरे काम करना बंद कर देते हैं तो यह रोग क्रोनिक किडनी फ़ेलियर कहलाता है। शुरुआत में दवा और परहेज़ से गुर्दे की कार्य क्षमता बढ़ायी जाती है। अगर कोशिश कामयाब न हो तब डायलिसिस या किडनी ट्रांसप्लांट करना पड़ती है।
नेफ्रोटिक सिंड्रोम क्या है
ये गुर्दे की एक बीमारी है। पेशाब में प्रोटीन आना, कोलेस्ट्रोल बढ़ना, ब्लड में प्रोटीन की कमी और शरीर में सूजन आना इसके कुछ लक्षण हैं। ये बीमारी अक्सर कम उम्र में नज़र आती है। एक बार इलाज कराने के बाद दुबारा सूजन आना नेफ्रोटिक सिंड्रोम के लक्षण हैं।
किडनी ट्रांसप्लांट के साइड-इफ़ेक्ट्स
– किडनी ट्रांसप्लांट के बाद गुर्दे में इंफ़ेक्शन सामान्य है
– कुछ मामलों ट्रांसप्लांट के बाद ब्लड क्लाटिंग हो सकती है
– गुर्दे के प्रत्यार्पण के बाद सर्दी जुकाम सामान्य है
किडनी रोग का एलोपैथिक उपचार
– किडनी बीमारी बढ़ने के बाद इलाज के लिए डायलिसिस और गुर्दे के प्रत्यार्पण किया जाता है। हम दो में से एक किडनी पर ज़िंदा रह सकते हैं। दोनों किडनियाँ ख़राब होने पर किडनी का प्रत्यार्पण करवाना पड़ता है।
– डायलिसिस में किडनी का काम आसान करने के लिए मशीन द्वारा ख़ून साफ़ किया जाता है, और किडनी ट्रांसप्लांट का मतलब है कि दूसरे की किडनी को लगाना।
– सरकारी अस्पतालों में गुर्दे के प्रत्यार्पण के लिए सालों इंतिज़ार करना पड़ता है। प्राइवेट अस्पताल में काम जल्दी हो जाता है, लेकिन किडनी ट्रांसप्लांट काफ़ी मँहगा पड़ता है।
किडनी रोग का आयुर्वेदिक उपचार
1. कासनी नाम का पौधा आयुर्वेदिक गुणों से परिपूर्ण है। इसकी पत्तियाँ किडनी, डायबिटीज़, लीवर और बवासीर जैसी बीमारियों के उपचार में रामबाण का काम करती हैं। ये हर्बल प्लांट आपको घर के पास की नर्सरी में मिल जाएगा। किडनी रोग का उपचार करने के लिए रोज़ आपको इसकी कुछ पत्तियाँ चबानी चाहिए। इस पौधे का वैज्ञानिक नाम सिकोरियम इंटिबस _ Cichorium Intybus है।
2. 10 ग्राम पीपल की छाल और 10 ग्राम नीम की छाल को 3 गिलास पानी में तब तक उबालिए, जब तक पानी आधा न रह जाए। फिर इसे ठंडा करके छान लीजिए। आपको इसका एक चौथाई भाग दिन में 3-4 बार पीना है। इस उपचार को एक हफ़्ता करने से क्रीअटनीन _ Creatinine कंट्रोल में आ जाता है।
3. 4 लीटर पानी में 250 ग्राम गोखरू कांटा एक चौथाई भाग रह जाने तक उबालिए, ठंडा होने दीजिए और छानकर एक बोतल में भर लीजिए। इसे 100 मिली सुबह शाम खाली पेट पीना चाहिए। काढ़ा पीने के एक घंटे तक कुछ खायें पिएं नहीं। जो लोग एलोपैथिक इलाज करवा रहे हैं, वो अपनी दवाइयाँ समय पर लेते रहें। अगर डायलिसिस या किडनी ट्रांसप्लांट की सलाह है, तो इसक प्रयोग को अवश्य आज़माना चाहिए। गोखरू में वो गुण है जो ट्रांसप्लांट की नौबत से किसी को भी बचा सकता है। गोखरू कांटा आप पंसारी की दुकान ख़रीद सकते हैं और दो हफ़्ते प्रयोग करने बाद आपको चमत्कारिक बदलाव दिखने शुरु हो जाएंगे।
गुर्दे की बीमारी का घरेलू उपचार
1. वाइटमिन
कुछ ख़ास तरह के वाइटमिन गुर्दे को स्वस्थ रखने में कारगर होते हैं। वाइटमिन डी इनमें से एक है, जिससे किडनी रोग की रोकथाम हो सकती है। वाइटमिन बी6 पथरी नहीं होने देता है, वहीं वाइटमिन सी किडनी को कई प्रकार के नुक़सान से बचाता है।
2. सेब का सिरका
एंटीबैक्टीरियल गुणों के कारण यह गुर्दे में इंफ़ेक्शन पैदा करने वाले बैक्टीरिया का अंत करता है। सेब का सिरका पथरी को भी धीरे धीरे गला देता है। इसके अलावा एप्पल साइड विनेगर उन हानिकारक तत्वों को किडनी से बाहर निकालता है, जिनसे नुक़सान हो सकता है।
3. बेकिंग सोडा
ब्रिटिश वैज्ञानिकों के अनुसार सोडियम बाइ कार्बोनेट किडनी रोग में लाभदायक होता है। यह रक्त में एसिडिटी को कम करता है, जिससे गुर्दे की बीमारी हो सकती है।
4. सब्ज़ियों का जूस
गुर्दे में कोई परेशानी होने पर लौकी, खीरा, गाजर और पत्ता गोभी का रस पीना अत्यंत लाभकारी है। इसके अलावा तरबूज़ और आलू का रस भी काफ़ी फ़ायदेमंद रहता है। जल्दी राहत पाने के लिए दिन में दो बार सब्ज़ियों का जूस पीना चाहिए।
5. मुन्नका का पानी
रोज़ रात सोने से पहले कुछ मुन्नके पानी भिगो दें और सुबह उसका पानी पी जाएँ। भीगे मुन्नके खाने की ज़रूरत नहीं है। कुछ दिन में आपको फ़ायदा नज़र आने लगेगा।
6. पानी की मात्रा
गुर्दों को स्वस्थ रखने के लिए ज़रूरी है कि आप ज़्यादा से ज़्यादा टॉक्सिक पदार्थों को बाहर निकाल दीजिए। इसके लिए आपको सिर्फ़ दिन में 4 लीटर या उससे अधिक पानी पीने की ज़रूरत है। आप कभी कभार नींबू पानी में ले सकते हैं। इससे किडनी के लिए आवश्यक वाइटमिन सी प्राप्त हो जाएगा।
किडनी रोग में जीवनशैली
– किडनी रोग से बचने के लिए आपको किसी भी तरह के इंफ़ेक्शन से बचना चाहिए।
– धूल, मिट्टी और सर्दियों में मुँह को ढककर रखें। इससे इंफ़ेक्शन की संभावना कम होती है।
– संतुलित आहार और पर्याप्त मात्रा में पानी पिए। जंक फ़ूड कम से कम खाएँ।
– तनाव मुक्त रहने का प्रयास करें। योग और व्यायाम लाभकारी रहेगा।
– पानी उबालकर पीना चाहिए।
– पैकेज़्ड फ़ूड खाने से बचिए।
– वज़न न बढ़ने दें।
– पर्याप्त मात्रा; 3 से 4 लीटर पानी रोज़ पिएँ
– स्मोकिंग और मद्यपान से बचें। यह रक्त संचार धीमा करते हैं।
– पेन किलर जैसी दवाएँ किडनी के लिए घातक होती हैं, इनसे बचें।
– हर साल पूरी बॉडी का चेकअप ज़रूर करवाएँ।
– एक किडनी वाले मरीज़ों को किसी भी बीमारी का इलाज कराते समय यह बात पहले बता देनी चाहिए।
– हेल्दी लाइफ़स्टाइल अपनाएँ।