रिफ़ाइंड ऑयल मधुमेह व कैंसर को न्‍यौता है

रिफ़ाइंड ऑयल का प्रयोग आमतौर पर सभी घरों में होने लगा है। एक तो यह वनस्‍पति घी से सस्‍ता पड़ता है और दूसरे जाड़े दिनों में इससे पके खाद्य पदार्थों में वसा सघन होकर जमती नहीं है। लेकिन रिफाइंड ऑयल सस्‍ता व सुलभ होने के नाते हर किचन में पहुंच गया। लेकिन इसका प्रयोग हृदय रोग, मधुमेह व कैंसर को निमंत्रण भी देता है। क्‍योंकि इसे गंध रहित, स्‍वाद रहित व पारदर्शी बनाने के लिए कई तरह के रसायनों का प्रयोग किया जाता है जिनमें कास्टिक सोड़ा, फासफोरिक एसिड, ब्लीचिंग क्लेंज आदि प्रमुख हैं। इनके प्रयोग से तेल के पोषक तत्‍व तो नष्‍ट होते ही हैं, साथ ही इसमें स्‍वास्‍थ्‍य को प्रभावित करने वाले कई तरह के रसायन व उससे उत्‍पन्‍न ज़हरीले तत्‍व शामिल हो जाते हैं। इस प्रक्रिया के तहत ख़राब बीजों का तेल भी निकाल लिया जाता है और उपभोक्‍ता के किचेन तक पहुंचा दिया जाता है।

ऐसे तेल को तकनीकी भाषा में चीप कामर्शियल आरबीडी ऑयल कहते हैं, इसी से स्‍पष्‍ट हो जाता है कि इसके पोषक तत्‍व नष्‍ट हो चुके हैं और इसमें ज़हर घुल चुका है।

रिफ़ाइंड ऑयल
रिफ़ाइंड ऑयल

रिफ़ाइंड ऑयल और बीमारियाँ

यहाँ बता दें कि रिफ़ाइंड ऑयल तेल बनाने के तिलहन को 200-500 डिग्री सेल्सियस के बीच कई बार गर्म किया जाता है। साथ ही बीजों से सौ प्रतिशत तेल निकालने के लिए घातक पैट्रोलियम उत्पाद हेग्जेन का प्रयोग किया जाता है। शोधार्थियों की मानें तो जब हम तेल को 200-225 डिग्री पर आधे घंटे तक गर्म करते हैं तो उसमें एचएनई नामक टॉक्सिक पदार्थ सृजित होता है। इसका निर्माण लिनोलिक एसिड के ऑक्सीकरण से होता है। यह घातक तत्‍व उत्तकों में प्रोटीन व अन्य आवश्यक तत्वों को क्षति पहुंचाता है। इसकी वजह से ऐथेरास्क्लिरोसिस, स्ट्रोक, पार्किंसन, एल्जाइमर, यकृत आदि के रोग हो सकते हैं। रिफ़ाइंड ऑयल से शरीर के ओमेगा 3 व ओमेगा 6 का अनुपात बिगड़ जाता है जो अनेक रोगों का कारण बनता है। चिकित्‍साशास्त्रियों के अनुसार शरीर में ओमेगा 3 और ओमेगा 6 का अनुपात सामान्य (1:1 या 1:2) रखना आवश्यक है।

कच्ची घानी सरसों का तेल
कच्ची घानी सरसों का तेल

रिफाइंड ऑयल की जगह क्‍या प्रयोग करें

यह बात तो स्‍पष्‍ट हो चुकी है कि खाना बनाने में रिफ़ाइंड ऑयल का प्रयोग घातक है। इसलिए खाना बनाने में कच्‍ची घानी से निकला तेल ज़्यादा उपयुक्‍त व स्‍वास्‍थ्‍य वर्धक है। इसलिए कच्‍ची घानी से निकला सरसों, नारियल या तिल के तेल का उपयोग ही खाना बनाने में करना चाहिए। ये तेल किसी तरह की हानि नहीं पहुंचाते हैं। जैतून व मूंगफली का तेल थोड़ा महंगा जरूर होता है लेकिन इसमें भी हानि पहुंचाने वाले तत्‍व नहीं होते। स्‍वास्‍थ्‍य की दृष्टि से ये तेल अच्‍छे माने जाते हैं। घी व मक्‍खन का भी उपयोग किया जा सकता है। क्‍योंकि इन्‍हें गर्म करने पर ये ऑक्‍सीकृत नहीं होते और एचएनई नहीं बनता है। इनके ऊपर भले ही मानव स्‍वास्‍थ्‍य को प्रभावित करने का आरोप लगा हो लेकिन आज भी ये आहार शास्त्रियों की पहली पसंद हैं।

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