विकास के साथ साथ मनुष्य के घर में बीमारियों का भी विस्तार हुआ है। मनुष्य के पैर विकास की तरफ़ जितना बढ़े, उतना ही वह प्रकृति से दूर होता गया। प्रकृति से दूरी का परिणाम अब सामने आने लगा है। जीवन की आपाधापी में न तो उसे शुद्ध हवा मिल रही है और न ही शुद्ध पानी। साथ ही आहार विहार की शुद्धता को भी अब महत्व नहीं दिया जा रहा है। इसलिए शरीर रुग्ण होता जा रहा है। दादी के घरेलू नुस्खे लगभग गायब हो गए हैं। आदमी बीमारियों के निदान के लिए एलोपैथिक दवाओं पर निर्भर हुआ है। जबकि दिनचर्या में थोड़े बदलाव से बहुत सारी बीमारियां समाप्त हो सकती हैं। इसलिए यदि स्वस्थ रहना है तो थोड़ा दिनचर्या में बदलाव लाना होगा। जैसे- नियमित सुबह टहलना, पार्कों में, खुले मैदानों में थोड़ा समय देना, योगाभ्यास करने आदि को अपने जीवन का हिस्सा बनाना होगा। साथ ही सभी रोगों का नाशक त्रिफला का सेवन यदि किया जा जाए तो मनुष्य पूरी तरह निरोगी हो सकता है।
त्रिफला के घटक
त्रिफला में तीन फलों का मिश्रण होता है, इसीलिए इसे त्रिफला कहते हैं। इसका मुख्य घटक आंवला है। आंवला के गुणों के बारे में आप जानते ही हैं। इसे सृष्टि का प्रथम फल माना गया है। कहा जाता है कि ब्रह्मा जी के आंसू पृथ्वी पर गिरे थे, उसी से आंवला के पौधे की उत्पत्ति हुई। यह जीवनी शक्ति प्रदान करने वाले सर्वश्रेष्ठ रसायन से भरपूर होता है। च्यवन ऋषि का बुढ़ापा दूर करने में यही फल समर्थ हुआ था। यह रक्त को शुद्ध करता है तथा प्रचुर मात्रा में विटामिन सी प्रदान करता है। यह तमाम तरह के चर्मरोगों का शत्रु है। इसके साथ हरड़ व बहेड़ा को मिला देने से त्रिफला बनता है जो त्रिदोषों को समाप्त कर नया जीवन देने की कारगर औषधि है। त्रिदोषों के बारे में थोड़ा और स्पष्ट कर दें। आयुर्वेद के अनुसार तीन दोष- वात, कफ व पित्त के कुपित होने से पैदा होते हैं। यही सभी बीमारियों की जड़ हैं। त्रिफला इन सभी तीनों दोषों को समाप्त कर वात, कफ व पित्त को संतुलित करता है। इनके संतुलित होने पर कोई बीमारी नहीं होती।

कैसे बनाएं त्रिफला
आंवला 400 ग्राम, बहेड़ा 200 ग्राम व हरड़ 100 ग्राम लें। त्रिफला बना-बनाया बाजार में भी उपलब्ध है, बहुत सी कंपनियां इसे बनाती हैं। लेकिन घर पर इसका निर्माण करना ज्यादा उपयुक्त है। जड़ी-बूटियों या पंसारी की दुकान पर तीनों साबूत या तीनों के चूर्ण मिल जाएंगे। यदि साबूत आंवला, हरड़, बहेड़़ा खरीदे हैं तो घर पर इसे बारीक पीस लें। यदि चूर्ण खरीदें हैं तो इन्हें उपरोक्त मात्रा में मिला लें और प्रतिदिन सुबह ब्रश करने के बाद एक चम्मच ताजा पानी के साथ सेवन करें। इसके सेवन के बाद एक घंटे तक कुछ भी खाने-पीने से परहेज करें।
त्रिफला का सेवन
हमारे देश में दो-दो माह की छह ऋतुएं होती हैं। हर ऋतु में त्रिफला का सेवन करने हेतु उसके अनुपान की अलग-अलग व्यवस्था है। जिस वस्तु के साथ औषधि ली जाती है, उसे अनुपान कहते हैं।
14 मई से 13 जुलाई- ग्रीष्म ऋतु
इस दौरान त्रिफला चूर्ण को चौथाई भाग गुड़ मिलाकर सेवन किया जाता है।
14 जुलाई से 13 सितंबर- वर्षा ऋतु
इस दौरान त्रिफला चूर्ण को चौथाई भाग सेंधा नमक मिलाकर सेवन किया जाता है।
14 सितंबर से 13 नवंबर- शरद ऋतु
इस दौरान त्रिफला चूर्ण के साथ चौथाई भाग देशी खांड़ मिलाकर सेवन किया जाता है। -14 नवंबर से 13 जनवरी- हेमंत ऋतु। इस दौरान त्रिफला चूर्ण के साथ चौथाई भाग सोंठ मिलाकर सेवन किया जाता है।
14 जनवरी से 13 मार्च- शिशिर ऋतु
इस दौरान त्रिफला चूर्ण के साथ चौथाई भाग छोटी पीपल का चूर्ण मिलाकर सेवन किया जाता है।
14 मार्च से 13 मई- वसंत ऋतु
इस दौरान त्रिफला चूर्ण के साथ इतना शहद मिलाएं ताकि अवलेह बन जाए और सेवन करें।
त्रिफला का सेवन करने के लाभ
- 1 वर्ष तक नियमित सेवन से सुस्ती दूर होती है।
- 2 वर्ष के सेवन से सभी रोग ख़त्म हो जाते हैं।
- 3 वर्ष तक सेवन से आँखों को लाभ पहुंचता है।
- 4 वर्ष तक सेवन से चेहरे की कांति बढ़ती है।
- 5 वर्ष तक सेवन से बुद्धि विकसित होती है।
- 6 वर्ष तक सेवन से बल में वृद्धि होती है।
- 7 वर्ष के सेवन से बाल काले होने शुरू होते हैं।
- 8 वर्ष के सेवन से शरीर युवाओं की तरह ऊर्जावान होता है, इसके बाद भी नियमित सेवन से हमेशा के लिए रोगों से मुक्ति मिल जाती है।
- 9 वर्ष के सेवन से आंखों की ज्योति बढ़ती है।
- 10 वर्ष के सेवन से वाणी में मिठास आती है।
- 11 वर्ष के सेवन से वाणी में वह शक्ति आ जाती है, जो कहेंगे वह सत्य होगा।
- 12 वर्ष के नियमित सेवन से पूरे जीवन आपको कोई रोग नहीं हो सकता।