स्‍वास्‍थ्‍य का साथी अशोक का पेड़

हमारे आसपास मौजूद अशोक का पेड़ हमारे स्‍वास्‍थ्‍य का साथी भी है। इसे हेमपुष्प, ताम्र पल्लव आदि नामों से भी जाना जाता है। इस वृक्ष की छाल, फूल व बीजों में अनेक औषधीय गुण होते हैं। यह मुख्‍यतया दो तरह का होता है, एक की पत्तियां रामफल जैसी और दूसरी की पत्तियां आम के पत्तियों की तरह होती हैं लेकिन किनारे पर लहरदार होती हैं। औषधियों के लिए पहली किस्‍म के अशोक का प्रयोग ज्‍यादातर किया जाता है। लान में सजावट के लिए भी अशोक के पेड़ लगाए जाते हैं लेकिन इनका प्रयोग औ‍षधियों में नहीं किया जाता, सजावटी व असली के अशोक के पेड़ में बहुत अंतर होता है। असली अशोक की छाल का स्‍वाद कड़वा होता है तथा देखने में यह बाहर से घूसर व भीतर से लाल रंग की होती है। छूने पर यह खुरदरी लगती है।

आयुर्वेद के अनुसार अशोक का रस ठंडी प्रकृति का होता है, साथ ही स्‍वाद में यह कसैला व कड़वा होता है। यह रंग निखारने वाला, तृष्णा व ऊष्मा नाशक तथा सूजन दूर करने वाला होता है। यह रक्त विकार, पेट के रोग, सभी प्रकार के प्रदर, बुखार, जोड़ों के दर्द तथा गर्भाशय की शिथिलता को दूर करता है। अशोक का मुख्य प्रभाव पेट के निचले हिस्सों, गर्भाशय व ओवरी पर पड़ता है। महिलाओं की प्रजनन शक्ति बढ़ाने में यह सहायक होता है। अशोक में कीटोस्टेरॉल पाया जाता है जिसकी क्रिया एस्ट्रोजन हार्मोन जैसी होती है।

अशोक के फूल
Asoca Flowers

अशोक के पेड़ के लाभ

अशोक के फूल का प्रयोग

– मासिक धर्म संबंधित कष्‍ट दूर करने के लिए स्‍नान के बाद साफ कपड़े पहन कर अशोक के पेड़ की आठ नई कलियों का सेवन करना लाभप्रद है।

– दही के साथ अशोक के फूल का नियमित सेवन करने से गर्भ स्‍थापित होता है।

अशोक के बीज का प्रयोग

– पेशाब न आने या रुक-रुक कर आने तथा पथरी के कष्‍ट में अशोक के बीज में पीसकर लेने से लाभ होता है।

– स्त्रियां जब 45−50 वर्ष की आयु में आती हैं तो यह उनके रजोनिवृत्ति के संधिकाल का समय होता है। ऐसे समय अशोक के संघटक हार्मोंस का संतुलन बिठाने में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

– अशोक के पेड़ के बीजों का एक चम्‍मच चूर्ण यदि पान के साथ चबाया जाए तो सांस फूलने की समस्‍या दूर हो जाती है।

अशोक की छाल का प्रयोग

– इसकी छाल गर्भाशय संबंधित रोगों में विशेष लाभ करती है। इसमें एस्टि्रन्जेंट (कषाय कारक) और गर्भाशय उत्तेजना नाशक संघटक मौजूद होते हैं। यह फायब्रायड ट्यूमर के कारण होने वाले अतिस्राव में भी विशेष लाभकारी है।

– सफेद जीरा, दालचीनी, इलायची और अशोक की छाल का काढ़ा बनाकर पीने से रक्‍त प्रदर में लाभ होता है। इसका सेवन दिन में तीन बार करना चाहिए।

– मिसरी व अशोक की छाल का चूर्ण समान मात्रा में मिला लें। यह चूर्ण एक चम्‍मच गाय के दूध के साथ दिन में तीन बार लेने से श्‍वेत प्रदर में लाभ होता है।

– गुर्दे, मासिक धर्म व पेट दर्द तथा मूत्र संबंधी समस्‍याओं में अशोक की छाल के मदर टिंक्चर का प्रयोग किया जाता है।

– अशोक की छाल का क्वाथ अति रजस्राव में लाभकारी है। ढाई सौ ग्राम छाल को लगभग चार सौ ग्राम पानी में उबालें, जब पानी एक चौथाई रह जाए तो एक किलो चीनी मिलाकर पकाएं। पक जाने पर इसे आग से उतार लें और ठंडा करके किसी शीशी में भरकर रख लें। प्रतिदिन दस ग्राम दिन में तीन-चार बार पानी के साथ लें, रक्‍तस्राव रुक जाता है। रक्तस्राव यदि दर्द के साथ हो तो चौथे दिन से शुरू करके रजस्राव बंद न होने तक नियमित रूप से यह क्वाथ देना चाहिए।

– मुंहासों, फोड़े-फुंसियों पर अशोक की छाल के काढे में समान मात्रा में सरसो का तेल मिलाकर लगाने से लाभ होता है।

अशोक के पेड़
Saraca Asoca Tree

Saraca Asoca Tree Benefits

– अशोक की छाल का चूर्ण व ब्राह्मी समान मात्रा में मिला लें। एक चम्‍मच चूर्ण एक कप दूध के साथ नियमित लेने पर बुद्धि का विकास होता है और बुद्धिमंदता दूर होती है।

– खूनी बवासीर के लिए अशोक के पेड़ की छाल व फूल कारगर उपाय हैं। सुबह छाल व फूलों को समान मात्रा में लेकर एक गिलास पानी में भिगो दें और शाम को इस पानी को छानकर पी लें। इसी प्रकार रात को सोते समय भिगो दें और सुबह उठकर छानकर पानी को पी लें।

– अनैच्छिक मांसपेशियों को सिकोड़ने व ढीले करने वाले तत्‍व अशोक की छाल में पाए जाते हैं। इसके प्रयोग से गर्भाशय के संकुचन की दर बढ़ जाती है और यह सिकुड़न अन्य दवाइयों से हुए संकोचन के मुकाबले अधिक समय तक प्रभावी रहती है। इसका कोई हानिकारक प्रभाव भी नहीं होता।

– अशोक के पेड़ की छाल रक्‍त शोधन का कार्य भी करती है। छाल को पौष या माघ महीने में इकट्ठा कर सूखी व ठंडी हवा में परिरक्षित कर लें। फूलों को वर्षा ऋतु में और कलियों को शरद ऋतु से पहले इकट्ठा करना चाहिए। इसके सूखे हुए भागों का चूर्ण छह माह से एक वर्ष तक प्रयोग किया जा सकता है।

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