भगंदर जिसे Fistula के नाम से भी जाना जाता है। यह एक गंभीर रोग है। जल्दी ठीक होने का नाम नहीं लेता है, जिसे होता है वह लंबे समय तक परेशान रहता है। इसमें गुदा मार्ग के बाहर एक या अधिक पिंड उत्पन्न हो जाते हैं जिससे हमेशा स्राव आता रहता है। इस रोग में व्रण बहुत गहरे हो जाते हैं और मल भी उनसे चिपक जाता है। कांस्टीपेशन हो जाने पर रोगी को बहुत पीड़ा होती है। हमेशा रक्त मिश्रित पीब का स्राव होता रहता है जिससे कपड़े भी खराब हो जाते हैं। चलने-फिरने में भी परेशानी होती है। बिस्तर पर पीठ के बल लेटने या कुर्सी पर बैठकर काम करना मुश्किल हो जाता है। सीढ़ियां चढ़ने-उतरने में भी काफी परेशानी होती है।
प्रवृत्ति
वेदनायुक्त पिंडिकाओं से गुदा के भीतरी भाग में बने नासूर का नाम ही भगंदर या फिस्टुला है। गुदा के चारों ओर का भाग अधिक पोला होता है, जब पिंडिकाएं पककर फूटती हैं तो मवाद पोला स्थान की धातुओं की तरफ चला जाता है जो ठीक प्रकार से बाहर नहीं निकल पाता है, इससे रोगी को अत्यंत पीड़ा होती है। उठने-बैठने, चलने-फिरने में काफी दर्द होता है। समय से सही उपचार न होने पर यह नासूर दूसरी तरफ भी अपना मुंह बना लेता है, तब यह दो मुखी नली की भांति होकर और गंभीर हो जाता है, कभी कभी तो इसका दूसरा मुंह नितंब या जांघ तक पहुंचकर खुलता है, यह बहुत कष्टदायक स्थिति होती है, इस स्थिति में भगंदर के नासूर से खून, लसिका व दुर्गंधयुक्त मल रिसता है।
भगंदर के कारण
– शौच के बाद स्वच्छ जल से मल द्वार ठीक से साफ न करना भी इसका एक कारण है।
– अधिक देर तक कुर्सी पर बैठकर काम करने से भी यह रोग हो सकता है।
– लंबी दूरी तक साइकिल से यात्रा करने वाले, ऊंट या घोड़े की लंबी सवारी करने से भी फिस्टुला हो सकता है।
– तली-भुनी चीजें, तेल, मिर्च, मशाला, फास्ट फूड व अनियमित भोजन भी इसका एक कारण है।
– लंबे समय तक कब्ज़ रहने तथा अधिक समय तक कठोर या गीले स्थान पर बैठने से भी यह रोग हो सकता है।
– गुदामैथुन भी इसके कारणों में एक है।
– मलद्वार पर खुजली होने पर नाखून से खुरच देने पर भी वहां घाव हो सकता है या मल द्वार पर किसी प्रकार चोट लगने, फोड़ा-फुंसी होने से भी वह भगंदर का रूप ले सकता है।
भगंदर के प्रकार
फिस्टुला मुख्यत: दो प्रकार के होते हैं- अपूर्ण भगंदर व पूर्ण भगंदर। अपूर्ण भगंदर में नासूर का एक सिरा ही खुला होता है। दूसरा बंद होता है। जब नासूर का मुंह मलाशय पर खुलता है तो इसे अंतर्मुख भगंदर एवं मुंह बाहर की त्वचा पर खुले तो उसे बहिर्मुख भगंदर कहते हैं। पूर्ण भगंदर में नासूर के दोनों सिरे खुले होते हैं।
भगंदर के लक्षण
गुदा में छोटी-छोटी फुंसिया हो जाती हैं जिन्हें पिंड या पिंडिकाएं कहते हैं। अक्सर ये फुंसियां ठीक होती हैं और फिर हो जाती हैं। कुछ समय के बाद फुंसियां ठीक नहीं होतीं और लाल रंग की हो जाती हैं और वहां घाव बना देती हैं, इससे मल त्याग के समय गुदा के मल द्वार पर खुजली व दर्द शुरू हो जाता है। यही भगंदर का रूप ले लेता है। मवाद आने लगता है। कमर के पास सुई चुभने जैसा दर्द, जलन व खुजली की अनुभूति होती है।
पैत्तिक भगंदर में पिंडिका का आकार ऊंट की गर्दन के समान होता है, पिंडिका जल्दी पकती है और उसमें से दुर्गंधयुक्त गर्म स्राव होता है।
कफज भगंदर में गुदामार्ग में खुजली के साथ लगातार गाढ़ा स्राव होता है। इसमें पीड़ा कम होती है।
सन्निपारज भगंदर में पिंडिका का रंग विविध प्रकार होता है, इसमें ज्यादा दर्द के साथ स्राव होता है, इसकी आकार गाय के थन की भांति होता है।
शल्यकर्म के दौरान क्षत उत्पन्न होने से आगंतुज भगंदर बनता है, बाद में इसमें कीड़े पड़ जाते हैं जो गुदा मार्ग को छेदकर नली में अनेक मुंह बना लेते हैं जिनसे पूय, मूत्र, पुरिष आदि का क्षरण होता है।
घरेलू उपचार
– अनार के ताजे कोमल पत्ते 25 ग्राम लें और उसे 300 ग्राम पानी में उबालें, जब पानी आधा रह जाए तो उसे छानकर फिस्टुला को धोने से बहुत लाभ होता है।
– नीम की पत्तियों को उबालकर दिन में दो बार धोने तथा फिस्टुला पर नीम की पत्तियों का लेप लगाने से लाभ होता है।
– लाजवंती व काली मिर्च पर जल का छींटा मारकर पीसकर फिस्टुला पर लगाने से आराम मिलता है।
– लहसुन को पीसकर घी में भून लें और उसका भगंदर पर लेप करें, इससे जीवाणु नष्ट हो जाते हैं।
– आक का दूध लाएं और उसमें रूई भिगोकर सुखाकर रख लें। इस रूई को सरसों के तेल में भिगोकर मिट्टी के पात्र पर काजल बनाएं। इस काजल को फिस्टुला पर लगाने से बहुत लाभ होता है।
– हल्दी में आक का दूध मिलाकर पीस लें, थोड़ा सूखने पर उसे बत्ती बनाकर भगंदर के व्रण पर लगाने से लाभ होगा।
– गिलोय, सोंठ, चमेली के पत्ते व सेंधा नमक को कूट-पीसकर उसमें मट्ठा मिलाकर फिस्टुला पर लेप करने से लाभ होता है।
– फिस्टुला को त्रिफला क्वाथ से धोकर उसपर बिल्ली या कुत्ते की हड्डी के महीन चूर्ण का लेप कर देने से भगंदर ठीक हो जाता है।
– कांचनार गूगल, किशोर गूगल व आरोग्यवर्धिनी वटी की दो-दो गोली दिन में तीन बार गर्म पानी के साथ लेने से लाभ होता है। दो माह के नियमित प्रयोग के बाद फिस्टुला ठीक हो जाता है।
– रोगी को भोजन के बाद विंडगारिष्ट, अभयारिस्ट एवं खादिरारिष्ट 20-20 मिली. की मात्रा में सामान जल मिलाकर सेवन करना चाहिए।
परहेज
– तली-भुनी चीजें, तेल, मिर्च, मसाला, खटाई आदि से परहेज करना चाहिए।
– ऊंट, घोड़े, साइकिल व स्कूटर आदि पर दूर तक यात्रा नहीं करना चाहिए।
– अधिक समय तक कुर्सी पर बैठकर काम करने से बचें।
– दूषित जल से स्नान न करें।
– समलैंगिक सहवास से दूर रहें।