छाती में ट्यूमर का इलाज

छाती में ट्यूमर (अंग्रेजी: Breast Tumor) हो तो साँस लेने में तक़लीफ़ शुरू हो जाती है। शुरू-शुरू में आदमी बर्दाश्‍त करता है लेकिन साँस की तक़लीफ़ के साथ ही जब छाती में दर्द शुरू हो जाता है तो चिकित्‍सक के पास भागता है, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। एलोपैथ में बिना ऑपरेशन के इसका कोई कारगर इलाज नहीं है लेकिन इसमें इतना ज़्यादा ख़र्च आता है कि सामान्‍य व्‍यक्ति के लिए उसे वहन कर पाना मुश्किल होता है। होम्‍योपैथ एक ऐसी चिकित्‍सा पद्धति है जो ग़रीब से ग़रीब आदमी के बजट में आ जाती है और ट्यूमर भी ठीक हो जाता है।

छाती में ट्यूमर का निदान

एक व्‍यक्ति को बहुत दिन से साँस लेने में तक़लीफ़ थी लेकिन वह बर्दाश्‍त करते रहे, जब छाती में दर्द शुरू हो गया तो वे चिकित्‍सक के पास भागे। दवा चली लेकिन जब कोई आराम नहीं हुआ तो एक्‍स-रे कराया गया। एक्‍स-रे में एक धब्‍बा नज़र आया, चिकित्‍सकों ने सोचा कि हो सकता है फ़िल्‍म एक्‍सपोज़ कर गई हो, उन्‍होंने दुबारा एक्‍स-रे कराया, तब भी फिल्‍म में धब्‍बा दिखाई दे रहा था। इसके बाद उनकी एमआरआई कराई गई, तब पता चला कि यह एक हायटेटिड ट्यूमर है।

छाती में ट्यूमर का एक्स-रे

जैसा कि हायटेडिड ट्यूमर में होता है, इसमें फ़्ल्यूड के अतिरिक्त कैल्शियम के टुकड़े भी थे। ट्यूमर इतना बड़ा हो गया था कि उसने साँस नली को एक तरफ़ धकेल दिया था जिससे साँस लेने में तक़लीफ़ हो रही थी। चिकित्‍सकों ने तुरन्त उन्हें मुंबई जाकर ऑपरेशन कराने की सलाह दी, क्‍योंकि उस अस्‍पताल में इस ट्यूमर के ऑपरेशन की सुविधा व विशेषज्ञता दोनों नहीं थी। यदि सामने से ऑपरेशन होता तो हृदय को हटाना पड़ता और पीछे से ऑपरेशन करने पर नर्व डैमेज हो सकती थी जिससे वे लकवे का शिकार हो सकते थे।

मुंबई जाने व ऑपरेशन के ख़र्च का अनुमान लगाकर उन्‍होंने पहले इसकी होम्‍योपैथिक चिकित्‍सा करा लेना बेहतर समझा। सोचा यदि आराम नहीं हुआ तो मुंबई जाएंगे। होम्‍योपैथिक चिकित्‍सक ने भी रिपोर्ट देखकर पहले तो हाथ खड़े कर दिए, लेकिन बाद में उनके अनुरोध पर वह चिकित्‍सा करने के लिए तैयार हुए। चिकित्‍सक ने उनके रोग के बाबत पूरी जानकारी और लक्षणों के बारे में पूछा। पता चला कि छाती में तेज़ दर्द के साथ ही साँस लेने में भी तक़लीफ़ होती है। यही मूल समस्‍या थी।

होम्योपैथिक दवा

होम्‍योपैथिक चिकित्‍सक ने शुरू में उन्‍हें केल्केरिया कार्ब 1000 की दो खुराक आधे-आधे घंटे से सप्ताह में केवल एक दिन और लेपिस ऐल्वम 30सिलीसिया 30 की दो- दो खुराक़ प्रति दिन लेने के लिए दवा दी और पंद्रह दिन बाद बुलाया। पंद्रह दिन बाद जब वह आए तो उनकी दोनों तक़लीफ़ यानी छाती का दर्द व साँस लेने में दिक़्क़त काफ़ी कम हो गई थी। पुन: उन्‍होंने वही दवा पंद्रह दिन की दे दी। एक माह बाद काफ़ी आराम मिल गया। उनकी दवा थोड़ी लंबी चली लेकिन पूर्णत: स्‍वस्‍थ हो गए।

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