थायराइड की जांच कराने का सही वक़्त

थायराइड एक गंभीर समस्‍या है। यह ग्रंथि होती तो बहुत छोटी है लेकिन हमारे स्‍वास्‍थ्‍य में इसका बहुत अर्थ होता है। इसकी गड़बड़ी सीधे हमारे स्‍वास्‍थ्‍य को प्रभावित करती है। तराई इलाकों में यह नब्बे प्रतिशत लोगों को है, जिससे वहाँ के लोग गंभीर बीमारियों से पीड़ित हैं। इसलिए बेहतर स्‍वास्‍थ्‍य के लिए समय-समय पर थायराइड की जांच कराना बहुत जरूरी है। इस पोस्‍ट के ज़रिये थायराइड का टेस्ट कब कराया जाए, उसका सही वक़्त आप तक पहुँचाने की कोशिश कर रहा हूँ।

थायराइड की जांच कब कराएँ

पैंतीस वर्ष के बाद हर व्‍यक्ति को थायराइड की जांच करा लेनी चाहिए। हर पाँच वर्ष में एक बार थायराइड का टेस्ट ज़रूर करा लेनी चाहिए। ख़ासतौर से तराई बेल्‍ट के लोगों को इसमें कोई चूक नहीं करनी चाहिए।

थायराइड की जांच या थायराइड का टेस्ट

थायराइड के प्रकार

थायराइड मूलत: दो प्रकार का होता है। हायपोथायराइडिज़्म आमतौर पर 60 वर्ष के बाद की महिलाओं में देखा गया है। जबकि हायपरथायराइडिज़्म 60 वर्ष के बाद की महिला व पुरुषों दोनों को हो सकता है। दोनों स्थितियों में रोग की हिस्‍ट्री अत्‍यंत आवश्‍यक है, तभी इलाज बेहतर संभव हो पाता है।

थायराइड नेक-टेस्ट

दर्पण के समाने खडे हो जाएँ, गर्दन के सामने वाले हिस्से को देखें। यदि कुछ असामान्‍य दिख रहा है तो तत्‍काल चिकित्‍सक से संपर्क करें। गर्दन को थोड़ा पीछे झुकाकर थोडा पानी पीएँ, यदि कॉलर की हड्डी के ऊपर एडम्स-एप्पल से नीचे कोई उभार नज़र आए तो भी तत्‍काल चिकित्सक से परामर्श लें।

रक्‍त की जांच

यदि चिकित्‍सक परामर्श के बाद आपको थायरायड की आशंका से अवगत कराता है तो इसकी बेहतर उपाय है कि आप रक्‍त की जांच करा लें, इससे स्थिति एकदम स्‍पष्‍ट हो जाएगी।

टीएसएच की जांच

थायराइड में टीएसएच (थायराइड स्टिमुलेटिंग हार्मोन) स्तर की जांच महत्वपूर्ण है। यह एक मास्टर हार्मोन है जो थायराइड ग्रंथि को नियंत्रित करता है। यदि इसका स्तर अधिक है तो इसका अर्थ हुआ कि आपकी थायराइड ग्रंथि कम काम (हायपोथायराइडिज़्म) कर रही है। इसका स्‍तर कम होना थायराइड ग्रंथि के हायपर-एक्टिव होने (हायपरथायराइडिज़्म) की ओर संकेत करता है। इसके अलावा रक्त में थायराइड हार्मोन टी-थ्री एवं टी-फ़ोर की भी जांच कराई जा सकती है।

थायराइड का टेस्ट

हायपोथायराइडिज़्म का कारण

– हाशिमोटो-डिसीज़, हायपोथायराइडिज़्म का मूल कारण होता है, यह एक ऑटो-इम्यून-डीसीज़ है। इसमें शरीर खुद ही थायराइड ग्रंथि को नष्ट करने लग जाता है, इसकी वजह से थायराइड ग्रंथि थायरॉक्सिन का निर्माण करने में अक्षम होने लगती है। यह अनुवांशिक भी होता है।

– पीयूष ग्रंथि जब पर्याप्‍त मात्रा में टीएसएच नहीं उत्‍पन्‍न कर पाती है तो भी हायपोथायराइडिज़्म हो सकता है। दवाओं के दुष्‍प्रभाव के कारण भी इस रोग का जन्‍म होता है।

– ग्रेव्स डीसीज़ भी हायपरथायराइडिज़्म का प्रमुख कारण होता है। यह भी एक ऑटो-इम्यून डीसीज़ है, थायराइड ग्रंथि पर इसके हमले से थायराइड ग्रंथि से थायरॉक्सिन हार्मोन का निर्माण तेज़ी से होने लगता है और हायपरथायराइडिज़्म का संकट पैदा हो जाता है। इस समस्‍या में व्‍यक्ति आँखें गोलक से बाहर निकली प्रतीत होने लगती हैं।

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