गर्भावस्था में आहार पर विशेष ध्यान देने की ज़रूरत है। भोजन ऐसा हो जिसमें पर्याप्त पोषक तत्व हों, अधिक मात्रा में कैलोरी हो। इस समय माँ के पेट में एक शिशु भी पल रहा होता है, इसलिए उसको ध्यान में रखकर अधिक से अधिक पोषक तत्वों से भरपूर भोजन या नाश्ते का सेवन करना चाहिए। भोजन में उन चीज़ों को शामिल करें जिनमें प्रचुर मात्रा में विटामिन, खनिज, फॉलिक एसिड व आयरन मिलता हो। मलाई रहित दूध, दही, पनीर, छाछ आदि का उपयोग किया जा सकता है, क्योंकि इनमें कैल्शियम, प्रोटीन व विटामिन बी-12 की प्रचुर मात्रा होती है। शाकाहारी लोगों के लिए ये प्रोटीन के अच्छे स्रोत हैं। यदि दूध या दूध से बने सामान पसंद नहीं हैं या पचते नहीं हैं तो अपने आहार के संबंध में योग्य चिकित्सक की सलाह लेनी चाहिए।

गर्भावस्था में आहार
– प्रचुर मात्रा में प्रोटीन के लिए एक दिन में 45 ग्राम मेवा व 2/3 कप फलियों का सेवन करना चाहिए।
– 28 ग्राम माँस या मछली के बराबर एक अंडा, 14 ग्राम मेवा या चौथाई कप फलियाँ होती हैं।
– पर्याप्त मात्रा में शुद्ध पानी व फलों का रस पीना चाहिए।
– आहार में पर्याप्त आयोडीन शामिल करें, यह गर्भस्थ शिशु के विकास में मदद करेगा।
– गर्भावस्था के शुरुआती दौर में आमतौर पर भूख कम लगती है, मिचली होने लगती है। ऐसी स्थिति में पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थों का थोड़ा- थोड़ा दिन में कई बार सेवन करना चाहिए।
– गर्भावस्था के मध्य हिस्से में भूख कुछ ज़्यादा लग सकती है और अंतिम अवस्था में भी भूख बढ़ सकती है। यदि खाने के बाद पेट भारी लगने लगे या कोई परेशानी हो तो थोड़े-थोड़े समय पर कुछ न कुछ लेती रहें। यह ध्यान रखें कि आप अपने लिए नहीं, बल्कि गर्भ में पल रहे शिशु के लिए गर्भावस्था में आहार ले रही हैं।
– वज़न पर लगातार ध्यान दें। पहली तिमाही में संभव है कि वज़न ज़्यादा न बढ़े। दूसरी तिमाही में वज़न लगातार बढ़ना चाहिए। तीसरी तिमाही में वज़न ज़्यादा बढ़ता है, इसी समय शिशु का विकास भी ज़्यादा होता है। यदि वज़न 90 किलो से ज़्यादा या 50 किलो से कम है तो योग्य चिकित्सक से आहार के संबंध में सलाह लेना जरूरी है।
गर्भधारण के बाद खाने पीने में परहेज़
– डिब्बाबंद जूस में चीनी की मात्रा अधिक होती है, इसलिए इसका सेवन कम करना चाहिए।
– घी, मक्खन, नारियल, मलाईदार दूध व तेल का प्रयोग कम करें, इसमें संतृप्त वसा की मात्रा अधिक होती है।

– वनस्पति घी में ट्रांस फैट अधिक होता है जो संतृप्त वसा की तरह ही इस अवस्था में शरीर के लिए ठीक नहीं है। लेकिन वनस्पति तेल का उपयोग कर सकती हैं, क्योंकि इसमें अंसतृप्त वसा होती है जो वसा का अच्छा स्रोत है।
– मलाईदार दूध या डेयरी उत्पादों से परहेज़ करना चाहिए। इनमें ऐसे विषाणु हो सकते हैं जिनसे पेट संक्रमित हो सकता है और तबीयत बिगड़ सकती है।
– दूषित, विषाक्त, बासी भोजन नहीं लेना चाहिए। बाहर खाना खाते समय पनीर या सैंडविच आदि से परहेज़ करना चाहिए। हो सकता है कि पनीर ताजा न हो।
– सफेद, फफूंदीदार पपड़ी वाली चीज़ जैसे ब्री व कैमेम्बर्ट या नीली (ब्लू वेंड) चीज़ से भी बचना चाहिए।
– भेड़ या बकरी आदि के दूध से बनी अपाश्च्युरिकृत मुलायम चीज़ का भी सेवन न करें। इन सभी तरह की चीज़ में लिस्टीरिया जीवाणु होने का ख़तरा रहता है, जिससे लिस्टिरिओसिस नामक संक्रमण हो सकता है। यह संक्रमण अजन्मे शिशु को नुक़सान पहुंचा सकता है।
– ऐसी अवस्था में शराब का सेवन नहीं करना चाहिए।
– जो चीज़ें आपको पसंद हैं, वे सभी छोड़ने की ज़रूरत नहीं है लेकिन उन्हें मुख्य आहार न बनाएं। ख़ासकर तला हुआ भोजन या चीनी से भरपूर मिठाइयाँ को कम खाएँ। गर्भावस्था में आहार के रूप में आइसक्रीम की जगह केला व जलेबी की जगह बादाम या केसर का दूध पीना ज़्यादा लाभकारी होगा। कभी- कभार जामुन या चॉकलेट खाने का मन हो तो ले सकती हैं, लेकिन इनका ज़्यादा सेवन नहीं करना चाहिए।
मांसाहारी भोजन
– अधपके माँस, मुर्गी व अंडे आदि के सेवन से भी बचें, इनमें हानिकारक जीवाणुओं के होने की आशंका रहती है।
– डिब्बाबंद मछली न लें, आमतौर पर ये नमक के घोल में संरक्षित की जाती हैं। यदि सेवन करें तो इसमें से नमक की मात्रा पूरी तरह निकाल दें।