सोरायसिस _ Psoriasis एक वंशानुगत चर्म रोग है, इसे अपरस भी कहते हैं, यह त्वचा की ऊपरी सतह पर होता है। दूषित पर्यावरण के चलते भी यह रोग हो सकता है। इसके अलावा इसके होने के अन्य कई कारण हो सकते हैं। यह ठीक होने के बाद भी पुन: हो जाता है। अक्सर ठंडी के समय में यह बीमारी उभर जाती है। अभी तक कोई ऐसी जांच नहीं है जिससे सोरायसिस का पता चले, ख़ून की जांच कराने पर भी यह रोग पकड़ में नहीं आता।
यह रोग संक्रामक नहीं है, इसलिए रोगी को छूने या उसके संपर्क में रहने से इस रोग का संक्रमण नहीं होता है। एक-दो प्रतिशत लोगों में ही यह रोग देखने को मिलता है। एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति में इस रोग को लाइलाज माना गया है लेकिन कुछ प्रकृति प्रदत्त चीज़ें हमारे आसपास मौजूद हैं जिनके प्रयोग से हम इस रोग से छुटकारा पा सकते हैं।

अपरस – एक वंशानुगत चर्म रोग
सोरायसिस के लक्षण
अपरस में त्वचा के सेल्स बढ़ने लगते हैं। चमड़ी मोटी हो जाती है और उस पर पपड़ियां पड़ने लगती हैं जो सफेद चमकीली हो सकती हैं। यह रोग अपने चरम पर आता है तो पूरा शरीर पर मोटे लाल रंग की पपड़ीदार चमड़ी दिखने लगती है। इसका प्रकोप ज़्यादातर घुटना, कोहनी व खोपड़ी पर होता है। त्वचा शुष्क हो जाती है और वहां खुजली होने लगती है। जोड़ों में सूजन व दर्द हो सकता है।
सोरायसिस के कारण
अपरस का प्रमुख कारण वंशानुगत व पर्यावरणीय दुष्प्रभाव हैं। रिसर्च में पाया कि सामान्यतया जिसे यह बीमारी होती है उसके परिवार में पहले किसी न किसी सदस्य को यह हो चुकी होती है। इसलिए यह वंशानुगत है। पर्यावरणीय दुष्प्रभाव भी इस बीमारी को जन्म देते हैं। यह बीमारी किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकती है। आमतौर पर यह बीमारी 20 से 30 वर्ष की उम्र के अंदर प्रकट होती है।
घरेलू उपचार
– दस नग बादाम लेकर उसका पाउडर बना लें और पानी में उबालकर रात को सोते समय सोरायसिस वाले स्थान पर लगाएं। सुबह इसे धो लें। काफ़ी राहत मिलेगी।
– आधा लीटर पानी में चंदन का एक चम्मच पाउडर उबालें, जब दो हिस्सा जल जाए और एक हिस्सा बचे तो आग से उतार लें। इसमें थोड़ा सा गुलाब जल व चीनी मिला दें। इसे दिन में तीन बार पीने से काफ़ी राहत मिलती है।
– पत्तागोभी के ऊपर का पत्ता उतार लें। इसे आग पर थोड़ा गरम कर सोरायसिस वाले स्थान पर लगाकर सूती कपड़े से लपेट दें। दिन में दो बार ऐसा करें। साथ ही सुबह-शाम पत्तागोभी का सूप भी पीयें। कुछ दिन इसके नियमित प्रयोग से काफ़ी फ़ायदा होता है।

– पानी में नींबू का रस मिलाकर लगाने से भी लाभ होता है। हर तीन घंटे पर प्रभावित स्थान पर नींबू का रस पानी में मिलाकर लगाना चाहिए।
– पानी में शिकाकाई उबालकर लगाने से भी लाभ होता है।
– केले के पत्तों को सोरायसिस पर लगाकर सूती कपड़ा लपेट दें, कुछ दिन के नियमित प्रयोग से आराम मिलने लगता है।
सावधानी
– सोरायसिस होने पर किसी योग्य चिकित्सक के निर्देशन में दवा कराएं ताकि यह बीमारी बढ़ने न पाए।
– गले के इंफ़ेक्शन व तनाव से बचें। ये दोनों चीज़ें इस बीमारी को बढ़ाती हैं।
– कोशिश करें कि त्वचा अधिक खुश्क न होने पाए, त्वचा खुश्क होने पर खुजली उत्पन्न होती है।
– ठंडी में तीन लीटर व गर्मी में कम से कम 5 लीटर पानी पीयें।
– सोरायसिस होने पर 10-15 दिन फलाहार लें। इसके बाद दूध या फलों का रस लेना शुरू करें।
– यदि कब्ज़ है तो उसकी दवा कराएं। पेट साफ़ होते ही यह रोग घटना शुरू हो जाता है।
– पानी में नमक मिलाकर प्रभावित स्थान को धोएं, उसके बाद जैतून का तेल लगाएं।
– नमक, धूम्रपान, मसालेदार चीजों व शराब के सेवन से बचें।