हम सारा काम करने के बाद अंतत: आराम ही करते हैं। सबसे अधिक आराम सोने के दौरान मिलता है। जितनी गहरी नींद आएगी उतना ही शरीर व मस्तिष्क को आराम मिलेगा। शरीर व मस्तिष्क को जितना आराम मिलेगा उतना ही हमारे कार्य की गुणवत्ता बढ़ेगी। लेकिन शरीर व मस्तिष्क को केवल सोने से पूरा आराम नहीं मिलेगा बल्कि सही दिशा में सोने से पूरा आराम मिलता है। आज हम इसी विषय पर चर्चा करने जा रहे हैं कि सोने की सही दिशा क्या है, सोते समय सिर किधर हो और पैर किस दिशा में तथा उसका हमारे शरीर व मस्ष्कि पर क्या प्रभाव पड़ता है।
सोने की सही दिशा

चुंबक की विधि
विज्ञान के अनुसार पृथ्वी के उत्तरी और दक्षिणी दोनों ध्रुवों में चुंबकीय प्रवाह (Magnetic flux) मौजूद है। उत्तर दिशा (North) की ओर धनात्मक प्रवाह (Positive flow) है और दक्षिण दिशा (South) की ओर ऋणात्मक प्रवाह (Negative flow) है। हमारी शारीरिक संचरना के अनुसार हमारा सिर स्थान धनात्मक और पैर का स्थान ऋणात्मक प्रवाह वाला है। यह बिल्कुल उस चुंबक के समान है जो हमें दिशा का ज्ञान कराता है। कभी भी धनात्मक या ऋणात्मक प्रवाह आपस में मिल नहीं सकते। इसका पता हम चुंबक से लगा सकते हैं। चुंबक में दक्षिण से दक्षिण और उत्तर से उत्तर सिरे को मिलाने पर ये दोनों एक-दूसरे को धकेलते हैं। जब दक्षिण से उत्तर को मिलाया तो आपस में चिपक जाते हैं।
दक्षिण दिशा में सिर करके सोना लाभकारी
इसलिए दक्षिण की ओर पैर करके सोने पर हमारी शारीरिक ऊर्जा का क्षय होता है, अनिद्रा की समस्या उठ खड़ी होती है, रात भर अच्छी नहीं आएगी और सुबह उठने पर थकान महसूस होगी। जबकि दक्षिण की तरफ सिर करके सोने पर अच्छी नींद आएगी और मन शांत होगा और शरीर को पूरा आराम मिलेगा।
उत्तर दिशा में सिर करके सोना हानिकारक
उत्तर की तरफ सिर व दक्षिण की तरफ़ पैर करके सोने से चूंकि सिर भी धनात्मक और उत्तर दिशा भी धनात्मक, दूसरी तरफ़ पैर भी ऋणात्मक व दक्षिण दिशा भी ऋणात्मक है, इसलिए दोनों का आपस में मेल नहीं हो पाता और हमारी ऊर्जा क्षत-विक्षत हो जाती है। धनात्मक से धनात्मक व ऋणात्मक से ऋणात्मक मिलने पर प्रतिकर्षण बल यानी धक्का देने वाला बल काम करता है। इससे शरीर में संकुचन आता है और रक्त प्रवाह अनियंत्रित हो जाता है। इससे नींद नहीं आती और सुबह सोकर उठने के बाद भी थकान महसूस होती है।
बाकभट्ट – अष्टांग हृद्यम
विज्ञान ने तो इस पर बाद में काम किया। विज्ञान के बहुत पहले हमारे ऋषि-मुनियों ने इस बारे में हमें आगाह कर दिया था। 3000 साल पहले बाकभट्ट ऋषि हुए, उनके द्वारा लिखी गई पुस्तक ‘अष्टांग हृद्यम’ में मानव शरीर से संबंधित सैकड़ों सूत्र लिखे हुए हैं। उन्होंने भी यही कहा है कि सोते समय सिर हमेशा सूर्य की दिशा में रहना चाहिए। सूर्य की दिशा का मतलब पूर्व दिशा। उन्होंने कहा कि यदि संभव नहीं है या कोई मजबूरी है जिससे सिर पूर्व की दिशा में नहीं कर सकते तो उसे दक्षिण दिशा में करके सोना चाहिए। लेकिन उत्तर व पश्चिम दिशा में कभी भी सिर करके नहीं सोना चाहिए।
शेष सभी कार्यों के लिए उत्तर दिशा अनुकूल है लेकिन जीवन व सोने के लिए यह निषिद्ध है। यह मृत्यु की दिशा है। जब व्यक्ति मरने लगता है तब उसका पैर दक्षिण की तरफ़ और सिर उत्तर की तरफ़ किया जाता है ताकि उसके प्राण आसानी से निकल सकें।