एट्रियल सेप्टल डिफेक्ट (Atrial septal defect – ASD) के बारे शायद आप न जानते हों। दिल में छेद को कहते हैं। कुछ बच्चे जन्म के साथ ही इस बीमारी से पीड़ित होते हैं। पैदा होने के साथ ही उनके दिल में छेद होता है। ऐसे बच्चों की स्थिति बहुत नाज़ुक हो जाती है। ज़रा सा भी हंसने, रोने, खांसने आदि पर दौरा पड़ जाता है और शरीर नीला होने लगता है। सांस रुकने लगती है और बेहोशी जैसी हालत हो जाती है। हृदय में छेद के लिए एलोपैथ में भी कारगर इलाज है लेकिन हमेशा बच्चे को चिकित्सक की देखरेख में ही रहना होता है। कब दिक्कत बढ़ जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता।
दिल में छेद की समस्या
शहर के एक व्यवसायी के बेटे को दिल में छेद था, यह जन्मजात था, यह समस्या उसके पैदा होने के साथ ही आई थी। इसे लेकर वह बहुत चिंतित थे और परेशान रहते थे। दवा करा रहे थे लेकिन कोई लाभ नज़र नहीं आ रहा था। हमेशा लगता था कि बच्चा अब मर जाएगा कि तब मर जाएगा। उनके पास पैसे की कोई कमी नहीं थी। इसलिए बड़े से बड़े बालरोग विशेषज्ञ को दिखा चुके थे और जो भी दवाएं ज़रूरी पड़ीं आनन-फानन में आ गईं। लेकिन सारा पैसा व मेहनत बेक़ार जा रही थी, जब उसे दौरा पड़ता था और शरीर नीला पड़कर बेहोशी छाने लगती थी तो वे घबरा जाते थे। उनकी उम्मीद जवाब देने लगती थी। जांच में एट्रियल सेप्टल डिफेक्ट आया था।
अपने शहर के अलावा अन्य शहरों में भी जिसने जहां बताया, वहां गए और रुककर इलाज कराया लेकिन कोई लाभ नहीं दिखा। हार-मानकर अपने शहर लौट आए और शहर के एक बड़े बाल रोग विशेषज्ञ की देखरेख में बच्चे का इलाज कराने लगे। लेकिन स्थितियों में सुधार नहीं दिख रहा था और वे संतुष्ट नहीं हो पा रहे थे। वह दवा चल ही रही थी, इसी बीच किसी ने उन्हें एक होम्योपैथिक चिकित्सक के बारे में बताया और उन्हें एक बार दिखा लेने की सलाह दी।
होम्योपैथ से इलाज हुआ
होम्योपैथिक चिकित्सक ने अपनी जांच में पाया के कि हृदय में रक्त संचार के साथ सरसराहट की ध्वनि भी सुनाई दे रही है। बच्चे का शारीरिक विकास बाधित था और उसे बार-बार खांसी-जुकाम-बुखार हो जाता था। उन्होंने उसे ‘सोरीनम 1000 पोटेंसी‘ की दो पुड़िया, ‘केलकेरिया फ़ास 30‘ व ‘चायना 30‘ की दो-दो खुराक रोज़ लेने के लिए दी और एक सप्ताह की दवा देकर उन्हें एक सप्ताह बाद बुलाया। बच्चे की स्थिति में तेजी से सुधार होने लगा। तीन माह दवा कराने के बाद उन्होंने जांच कराई तो बच्चा रोग मुक्त था।