गूलर के रूप में प्रकृति ने मनुष्य को अनमोल वरदान दिया है। भारत में लगभग हर जगह यह वृक्ष पाया जाता है। नदियों के किनारे व दलदली स्थानों पर यह प्रचुरता में पाया जाता है। उत्तर प्रदेश में यह बड़े पैमाने पर स्वत: उगता है। इसे लंबी आयु वाला वृक्ष कहते हैं। आज हम इसके गुणों की चर्चा करने जा रहे हैं।
गूलर के बारे में
इसके पत्तों की लंबाई लगभग सत्तरह सेमी होती है और आकार भाले की तरह होता है। लाल-धूसर रंग की इसकी छाल होती और फल गुच्छों में लगते हैं, इसके फल बिल्कुल गोल होते हैं। जब यह फल पक जाता है तो इसे फोड़ने पर इसमें चींटियां भी निकलती हैं। मार्च से जून के बीच में इसमें फल आते हैं जो अंजीर की तरह से होते हैं। इसके तने से दूध निकलता है। कच्चा फल कसैला व दाहनाशक है। इसके कच्चे फल की सब्ज़ी भी बनाई जाती है। पका फल रुचिकर, मीठा, पित्तशमक, शीतल, तृषाशामक, थकान व कब्ज़ मिटाने वाला तथा पौष्टिक होता है। इसके फल, दूध, जड़, पत्ते व छाल के चूर्ण का अनेक रोगों में प्रयोग किया जाता है।
कफ-पित्त का संतुलन
शरीर में पित्त व कफ का संतुलन बनाने के लिए गूलर का नियमित सेवन किया जाता है। इसके सेवन से कफ व पित्त विकार नहीं होते। पेट की जलन शांत होती है। इसके पत्तों का चूर्ण भी मधु के साथ लेने पर लाभ होता है।
रक्तस्राव व मधुमेह
रक्तस्राव बंद करने के लिए गूलर की छाल बहुत उपयोगी है। साथ ही यह मधुमेह में भी लाभ पहुंचाती है। इसके कोमल−ताज़े पत्तों का रस मधु में मिलाकर मधुमेह के लिए लाभप्रद है, इसके सेवन से पेशाब में शर्करा की मात्रा कम होती है।
बवासीर
बवासीर के लिए गूलर के तने का दूध बहुत उपयोगी है। जिसे ख़ूनी बवासीर उसे इसके ताज़ा पत्तों का रस पीने से लाभ होता है। त्वचा का रंग निखारने के लिए भी सेवन लाभप्रद है।
बिवाई
ठंडी का मौसम ख़त्म होते ही हाथ-पैरों में बिवाई फटने लगती है। यह बहुत ही पीड़ादायक होती है। इसके लिए गूलर के तने का दूध श्रेष्ठ इलाज है। इसक लेप करने से बिवाई में आराम मिलता है।
मासिक धर्म
महिलाओं के मासिक धर्म की गड़बड़ी दूर करने में भी गूलर कारगर है। मासिक धर्म के दौरान अधिक रक्तस्राव होने पर इसकी छाल का काढ़ा पिलाना चाहिए। इसके पके फलों के रस में खांड या शहद मिलाकर पीना भी लाभप्रद है।
योनि विकार
योनि विकारों को दूर करने में यह काफ़ी लाभप्रद है। इसके काढ़ा का प्रयोग योनि प्रक्षालन के लिए बहुत ही कारगर उपाय है।
मुंह के छाले
मुंह के छाले के लिए गूलर के पत्तों या छाल का काढ़ा मुंह में कुछ देर रखना चाहिए, इससे दांत हिलने या मसूढ़ों के दर्द व मसूढ़ों से ख़ून आने की समस्या में भी लाभ होता है।
आग से जलने पर
आग से जल जाने पर जले हुए स्थान पर गूलर की छाल का लेप लगाने से लाभ होता है। जलन तत्काल शांत हो जाती है। कटे हुए स्थान पर लगाने से ख़ून निकलना बंद हो जाता है। इसके पके फल के शरबत में चीनी, खांड़ या मधु मिलाकर लेने पर गर्मियों में पैदा होने वाली जलन तथा तृषा शांत होती है।
नेत्र विकार
आंख लाल होना, आंख से पानी आना या जलन होने में इसके पत्तों का काढ़ा बनाकर उसे साफ व महीन कपड़े से छानकर ठंडा होने पर दो-दो बूंद दिन में तीन बार आंख में डालने से लाभ होता है। इससे नेत्र ज्योति भी बढ़ती है।
नकसीर
आमतौर पर गर्मियों में नकसीर फूटती है। इसके लिए गूलर के पके हुए फल के 25 मिलीलीटर रस में गुड़ या मधु मिलाकर सेवन करने से नकसीर फूटना बंद हो जाती है।
धातु दुर्बलता
दस बूंद गूलर का दूध एक बताशे में डालकर दूध के साथ सुबह-शाम लेने से धातु दुर्बलता दूर होती है। साथ ही रात को सोने से पहले इसके फलों का चूर्ण एक चम्मच लेने से शीघ्र लाभ होता है। इससे शीघ्र पतन दोष भी समाप्त होता है।
शुक्राणु वर्धक
एक छुहारा लें और उसकी गुठली निकाल दें, छुहारे में गूलर के दूध की 25 बूंद डाल दें। यह रोज़ सुबह खाने से वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या बढ़ती है।
मर्दाना शक्तिवर्धक
– दो बताशा लें और उसे एक चम्मच गूलर के दूध में पीसकर खा लें और ऊपर से गर्म दूध पी लें। सुबह-शाम इसके सेवन से मर्दाना शक्ति बढ़ती है।
– इसके पके फल को सुखाकर चूर्ण बना लें और इसमें बराबर मात्रा में मिश्री भरकर रख लें। रोज़ दो चम्मच यह चूर्ण खाकर ऊपर से गर्म दूध पीने से मर्दाना शक्ति में वृद्धि होती है। दो-दो घंटे अंतर पर यह चूर्ण या गूलर का दूध सेवन करने से स्वस्थ संतान का जन्म होता है और भरपूर वैवाहिक सुख भोगने में मदद मिलती है।
काम उत्तेजना
गूलर के फल का चूर्ण व बिदारीकंद का चूर्ण 6-6 ग्राम मात्रा में मिश्री मिले दूध के साथ सुबह-शाम लेने से पौरुष शक्ति व कामोत्तेजना में वृद्धि होती है। इसका सेवन महिलाओं के सारे रोग समाप्त कर देता है।
कब्ज़, खांसी, दमा
गूलर के पके फलों का शबरत मन को प्रसन्न करता है तथा पर्याप्त शक्ति प्रदान करता है। यह कई प्रकार के रोग जैसे कब्ज़, खांसी व दमा आदि को ठीक कर देता है।
उपदंश
चालीस ग्राम गूलर की छाल को एक लीटर पानी में उबालकर काढ़ा बना लें, इसमें मिश्री मिलाकर पीना उपदंश की बीमारी में लाभप्रद है।
शक्तिवर्धक
सौ ग्राम गूलर के कच्चे फलों का चूर्ण व सौ ग्राम मिश्री मिलाकर रख दें। इसमें से दस ग्राम रोज़ दूध के साथ लेने से शरीर को भरपूर शक्ति मिलती है।
श्वेत प्रदर
– गूलर के फूलों के चूर्ण को छानकर उसमें मधु व मिश्री मिलाकर गोली बना लें। प्रतिदिन नियमित 1 गोली का सेवन करने से प्रदर रोग से मुक्ति मिलती है। छिलका सहित इसके पके फल खाकर ऊपर से ताज़ा पानी पीने से श्वेत प्रदर ठीक होता है। इसके फलों के रस में मधु मिलाकर लेने से भी प्रदर रोग में लाभ होता है।
– महिलाओं के श्वेत प्रदर के लिए 1 किलो कच्चा गूलर लें, इसे तीन भाग में बांट लें। एक भाग उबालकर पीसकर एक चम्मच सरसो के तेल में फ्राई कर लें और इसकी रोटी बना लें। रात को सोते समय इस रोटी को नाभि पर रखकर कपड़ा बांध लें। शेष बचे भागों का प्रयोग इसी तरह अगले दो दिन करें।
रक्त प्रदर
– रक्तप्रदर के लिए गूलर की छाल पांच से दस ग्राम या फल दो से चार ग्राम लें, चीनी मिले दूध के साथ इसे सुबह-शाम लेने से रक्तप्रदर ठीक हो जाता है।
– ढाई सौ मिलीलीटर पानी में गूलर की 20 ग्राम छाल को उबालें, जब पानी 50 मिलीलीटर रह जाए तो इसमें 25 ग्राम मिश्री व 2 ग्राम सफेद जीरा का चूर्ण मिलाकर सेवन करने से रक्त प्रदर में लाभ होता है।
– समान मात्रा में पके गूलर के फलों का चूर्ण व मिश्री मिलाकर रख दें। छह ग्राम चूर्ण रोज़ सुबह-शाम दूध या पानी के साथ लेने से भी रक्तप्रदर ठीक होता है।
– पका गूलर का फल लें और उसके बीज निकालकर फल का रस निकालें और उसका मधु के साथ सेवन करें, इससे भी रक्तप्रदर ठीक होता है। रक्तप्रदर में इसकी सब्ज़ी भी लाभदायक है।
– गूलर के फल का एक चम्मच रस एक चम्मच मिश्री के साथ सुबह-शाम सेवन करने से कुछ ही हफ्तों में रक्तप्रदर के साथ-साथ मासिकधर्म के दौरान अधिक ख़ून आने की समस्या भी दूर होती है।
गर्भावस्था में रक्तस्राव
– गर्भावस्था में रक्तस्राव गर्भपात का लक्षण हो सकता है, इसलिए यह लक्षण दिखाई देने पर तत्काल पांच से दस ग्राम गूलर की छाल लें या दो से चार ग्राम गूलर का फल लेकर पीस लें और इसे चीनी मिले दूध के साथ पिलाएं। हर चार से छह घंटे पर यह प्रयोग तब तक करें जब तक लक्षण दिखाई देता रहे।
– गर्भस्राव या गर्भपात रोकने के लिए गूलर की जड़ या जड़ की छाल का काढ़ा भी लाभप्रद है।
भगंदर
रूई के फाहा में गूलर का दूध लगाकर नासूर या भगंदर पर रखें तथा रोज़ इसे बदलते रहें। इससे नासूर व भगंदर कुछ ही दिन में ठीक हो जाते हैं।
ख़ूनी बवासीर
– ख़ूनी बवासीर में गूलर के पत्तों या फलों के दूध की 10-20 बूंद पानी में मिलाकर पीने से लाभ होता है और रक्त विकार भी दूर होते हैं। साथ ही इसका दूध बवासीर के मस्सों पर लगाने से शीघ्र आराम मिलता है।
– 10 से 15 ग्राम गूलर के कोमल पत्तों को पीसकर महीन चूर्ण बना लें। एक पाव गाय के दूध की दही लें उसमें यह चूर्ण तथा थोड़ा सा सेंधा नमक मिलाकर सुबह-शाम सेवन करें, यह ख़ूनी बवासीर में बहुत उपयोगी है।
आंव (पेचिश)
– सुबह-शाम पांच से दस ग्राम गूलर की जड़ का रस चीनी मिले दूध के साथ लेने से आंव ठीक हो जाता है।
– गूलर के दूध की चार-पांच बूंद बताशे में डालकर खाने से भी आंव ठीक होता है।
– पका गूलर खाने से पेचिश ठीक हो जाता है।
– गूलर को उबालकर छान लें और इसे पीसकर इसकी रोटी बनाकर खाने से भी पेचिश में लाभ होता है।
– चीनी के साथ गूलर का पांच-छह बूंद दूध बच्चों को देने से आंव ठीक हो जाता है।
दस्त
– तीन ग्राम गूलर के पत्तों का चूर्ण, दो दाना काली मिर्च व थोड़ा सा चावल पानी के साथ पीस लें, उसमें काला नमक व छाछ मिलाकर छान लें, इसे सुबह-शाम सेवन करने से आंव में लाभ होगा।
– गूलर के दस ग्राम पत्तों को बारीक़ पीस लें और उसे पचास मिलीलीटर पानी में डालकर पीने से सभी प्रकार के दस्त ठीक हो जाते हैं।
रक्तपित्त दोष
– पका हुआ गूलर, गुड़ या मधु के साथ लेने से रक्तपित्त दोष दूर होता है। गूलर की जड़ को घिसकर चीनी के साथ खाना भी लाभप्रद है।
– पांच से दस ग्राम गूलर की छाल या दो से चार ग्राम गूलर का फल तथा दस से बीस ग्राम गूलर का दूध सेवन करने से हर प्रकार के रक्तपित्त में लाभ होता है।
फोड़ा व घाव
– फोड़ा पर गूलर का दूध लगाकर उसपर काग़ज़ चिपका देने से फोड़ा जल्दी ठीक होता है।
– घाव को गूलर की छाल से धोने पर घाव जल्दी भरते हैं।
– गूलर के पत्तों का बारीक़ चूर्ण घाव पर छिड़कने से घाव जल्दी ठीक होते हैं। साथ ही पांच-पांच ग्राम यह चूर्ण सुबह-शाम पानी के साथ सेवन करने से जल्दी आराम मिलता है।
– बावची को गूलर के दूध में भिगोंकर पीस लें और एक-दो चम्मच रोज़ इसे घाव पर लगाएं, घाव जल्दी ठीक होंगे।
चेचक
गूलर के पत्तों पर कांटेनुमा उठा होता है, उसे निकाल लें और गाय के ताज़े दूध में पीस लें। उसमें थोड़ी सी चीनी मिलाकर पिलाने से चेचक ठीक हो जाता है।
मूत्र रोग
– गूलर के कच्चे फलों का चूर्ण एक चम्मच व दो चम्मच मधु, दूध के साथ लेने से बहुमूत्र रोग में लाभ होता है।
– पांच से दस ग्राम गूलर की छाल या दो से चार ग्राम फल पीसकर इसमें चीनी मिलाकर दूध के साथ खाने पेशाब के साथ ख़ून आना बंद हो जाता है।
– रोज़ सुबह गूलर के दो पके फल खाने से पेशाब की जलन दूर होती है।
– आठ-दस बूंद गूलर का दूध दो बताशों में भरकर खाने से पेशाब में जलन व पेशाब होने के समय होने वाले कष्ट से छुटकारा मिलता है।
मधुमेह
सुबह-शाम भोजन के बाद एक चम्मच गूलर के फलों का चूर्ण एक कप पानी के साथ लेने से पेशाब में शर्करा का आना बंद हो जाता है। साथ ही गूलर के कच्चे फलों की सब्ज़ी का सेवन अधिक लाभकारी है। मधुमेह ख़त्म होने के बाद इसका सेवन बंद कर देना चाहिए।
नाक से ख़ून गिरना
पका हुआ गूलर का फल लें और उसमें चीनी भरकर घी में तलें, इसके बाद इस पर काली मिर्च तथा इलायची के दानों का आधा-आधा ग्राम चूर्ण छिड़ककर सुबह-शाम खाएं। साथ ही बैंगन का रस मुंह पर लगाएं।
नाक पकने पर
गूलर, शाल, अर्जुन व कुड़े के पेड़ की छाल को बराबर-बराबर मात्रा में लेकर चटनी बना लें। अब चटनी का चार गुना घी व घी का चार गुना काढ़ा बनाकर कड़ाही में पकाएं। जब इसकी मात्रा घी के बराबर हो जाए तो उतारकर छान लें। इसे नाक पर लगाने से आराम मिलता है।
अन्य प्रयोग
– गूलर का रस पिलाने से हैजा में लाभ होता है।
– शरीर के किसी भाग में बनी गांठ पर गूलर का दूध लगाने से लाभ होता है।
– गूलर की छाल के काढ़ा से गरारा करने से दांत व मसूढ़ों के सभी रोग विदा हो जाते हैं, दांत मजबूत होते हैं।
– गूलर के पत्तों पर उठे हुए कांटों को पीसकर इसमें दही व चीनी मिलाकर दिन में एक बार खाने से कंठमाला से छुटकारा मिलता है।
– तेज़ खांसी में गूलर का दूध तालू पर रगड़ने लाभ होता है।
– नाक, मुंह, योनि व गुदा से होने वाले रक्तस्राव में 1 चम्मच पानी के साथ 15 बूंद गूलर का दूध दिन में 3 बार लेने आराम मिलता है।
– शरीर में कहीं से भी ख़ून निकल रहा हो, गूलर के पत्तों का रस निकालकर लगा देने तुरंत ख़ून निकलना बंद हो जाता है।
– मां या गाय-भैंस के दूध में गूलर का कुछ बूंद दूध मिलाकर पिलाने से बच्चे हृष्ट-पुष्ट होते हैं।
– एक बताशे पर पांच बूंद गूलर का दूध डालकर बच्चों को खिलाने से सूखा रोग ठीक होता है।
– गूलर का दूध लगाने बच्चों के गाल की सूजन चली जाती है।
– गूलर के अंकुरों को पीसकर लगाने से बिच्छू का जहर चढ़ता नहीं और दर्द कम हो जाता है।