सफेद दाग (Safed daag) एक ऐसा त्वचा रोग है जो शुरू होता है तो रुकने का नाम नहीं लेता। प्रारंभ में ही इसका उचित इलाज नहीं किया गया तो यह बढ़ता ही जाता है औ धीरे-धीरे पूरे शरीर में फैल जाता है। इस रोग में शरीर के किसी हिस्से में शुरू में एक छोटा सफेद दाग दिखाई देता है। इसे ल्यूकोडर्मा (Leucoderma or Vitiligo) कहते हैं। आयुर्वेद के अनुसार इसका मुख्य कारण पित्त दोष है। आयुर्वेद में इसका समुचित इलाज है और यह रोग जड़ से ख़त्म हो जाता है। आप हर जगह से निराश हो गए हों तो यहां दिए जा रहे उपायों पर अमल करें, ये उपाय आपको इस बीमारी से छुटकारा दिलाने में मदद करेंगे।
सफेद दाग के कारण
Safed daag ke karan
गैस की समस्या, अत्याधिक चिंता व तनाव, लीवर में दोष, मांस-मछली के साथ दूध का सेवन, पेट में कीड़े, कैल्शियम में कमी, रक्त दोष आदि इसके मुख्य कारण होते हैं। यह समस्या जलने, कटने से भी हो सकती है। अनुवांशिकता भी इसका एक कारण है।
सफेद दाग की दवा १
Safed daag ki dawa
सामग्री– खैर की छाल 650 ग्राम, बाबची 150 ग्राम, देशी गाय का घी 800 ग्राम, परवल की जड़ 300 ग्राम, भृंगराज, जवासा व कुटकी 40-40 ग्राम तथा गूगल 80 ग्राम लें।
दवा बनाने की विधि
खैर की छाल व बाबची को मोटा-मोटा कूट कर रख लें। अब बाबची, भृंगराज, परवल व जवासा को अलग-अलग महीन पीस लें तथा गूगल के छोटे टुकड़े बना लें। खैर की छाल व बाबची को साढ़े छह किलो पानी में धीमी आंच पर पकाएं। पानी जब डेढ़ किलो रह जाए तो आग से उतार लें और किसी साफ़ कपड़े से छान लें और जो पदार्थ पेंदी में बचे उसे भी ठीक से निचोड़ लें। अब यह काढ़ा किसी साफ़ बर्तन में रखकर रात भर के लिए छोड़ दें। सुबह ऊपर का पानी निथार लें और जो पदार्थ नीचे पेंदी में बैठे हैं उन्हें छोड़ दें।
अब एक पीतल की या लोहे की कढ़ाही लें, प्राथमिकता पीतल की कढ़ाही को देनी चाहिए, न मिलने पर लोहे की कढ़ाही का इस्तेमाल करें। कढ़ाही में देशी घी, बना हुआ काढ़ा, गूगल के टुकड़े व पिसे हुए अन्य पदार्थों को डालकर धीमी आंच पर पकाएं। बीच-बीच में कढ़ाही में पल्टा या करछुल डालकर चलाते रहें। कुछ समय बाद कढ़ाही में नीचे काला चिपचिपा अंश दिखाई देने लगेगा। एक सलाई पर रूई लपेट कर घी को उसपर थोड़ा लगाकर आग में जलाएं, यदि चटर-चटर की आवाज़ आए तो समझे अभी दवा पूरी तरह पकी नहीं है। यदि बिना किसी आवाज़ के रूई जल जाए तो समझे दवा तैयार हो गई है और उसे आग से उतार लें।
कढ़ाही जब हल्की ठंडी हो जाए तो घी निकाल कर शीशे के किसी चौड़े मुंह वाले बर्तन में उसे रख दें। ध्यान रखना चाहिए कि दवा पकाते समय मिश्रण पूरी तरह न जले। जब शहद जैसा गाढ़ा बचे तभी आग से उतार लेना चाहिए।
प्रयोग
यह दवा खाने व लगाने दोनों में प्रयोग की जाती है। रोग यदि प्रारंभिक अवस्था में है तो एक बार, यदि ज़्यादा बढ़ गया है तो सुबह नाश्ते के समय और रात को सोते समय इसका प्रयोग करना चाहिए।
मात्रा
इस दवा का प्रयोग दस ग्राम मात्रा में श्रेयष्कर रहता है। इससे कम मात्रा में छोटे बच्चों को भी यह दवा दी जा सकती है।
प्रभाव
इसके नियमित प्रयोग से कुछ दिन के बाद दाग़ का रंग बदलने लगता है। दवा लगाने से यदि जलन हो तो बीच-बीच में इसका प्रयोग बंद कर दें और उस दौरान नारियल का तेल लगाएं। जब जलन शांत हो जाए तब फिर यह दवा लगाना शुरू करें। दवा लगाकर ऊपर से किसी पेड़ का पत्ता रखकर बांध देने से जल्दी लाभ होता है। दवा के प्रयोग के दौरान नारियल खाने व नारियल का पानी पीने से जलन नहीं होती है।
सफेद दाग की दवा २
यह सफेद दाग पर लगाने वाली दवा है। आमतौर पर सफेद दाग पर लागने वाली दवाएं जलन पैदा करती हैं। लेकिन यह दवा बिल्कुल जलन पैदा नहीं करती। आंख के पास या किसी कोमल अंग पर सफेद दाग हो तो उसके लिए यह दवा बहुत अच्छी है।
सामग्री – एक पाव सरसो का तेल, कच्ची हल्दी एक किलो यदि कच्ची हल्दी न मिले तो सूखी हल्दी आधा किलो लें लेकिन यह सुनिश्चित कर लें कि हल्दी में घुन न लगा हो।
दवा बनाने की विधि
हल्दी को मोटा-मोटा कूटकर चार किलो पानी में उबालें। जब एक किलो पानी बचे तो उस पानी को छानकर रख लें। अब एक लोहे की कढ़ाही लें और उसमें सरसो का तेल व हल्दी का पानी डालकर धीमी आंच पर पकाएं। जब पानी जल जाए और कढ़ाही में नीचे कीचड़ जैसा बचे तो आग से उसे उतार लें और ठंडा होने पर सावधानी पूर्वक तेल को निथार लें। इस दवा को अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए एक-एक किलो हल्दी का पानी इस तेल में तीन बार डालकर पकाएं। खाने वाली दवा के सेवन के साथ ही इस दवा को सफेद दाग पर नियमित लगाने से सफेद दाग विदा हो जाते हैं।
सफेद दाग की दवा ३
यह बहुत ही सरल उपाय है। न दवा बनाना है और न बहुत सारी सामग्री लगेगी। केवल बाबची का दाना लेकर रख लें। पहले दिन एक, दूसरे दिन दो, तीसरे दिन तीन दाना सुबह खाली पेट पानी के साथ लें। इसी तरह 21 दिन तक रोज़ दानें बढ़ाते जाएं। 22 दिन 20, 23 दिन 19, इसी तरह दानें कम करते 1 दानें तक आएं। इसी तरह तीन-चार बार बढ़ाते और घटाते हुए बाबची के दानों का सेवन करें। सफेद दाग ख़त्म हो जाएंगे। यदि दवा प्रयोग के दौरान कभी गर्मी लगे तो उसे आगे न बढ़ाएं, वहीं से दानें कम करते हुए 1 तक आ जाएं और पुन: नये सिरे से शुरू करें।
इस दौरान नारियल का पानी पीने व नारियल की गिरी खाने से गर्मी लगने कि समस्या कम हो जाती है। यदि रात को दो कप पानी में दो चम्मच आंवला का पाउडर भिगो दें और सुबह छानकर इस पानी से बाबची के दानें लें तो गर्मी नहीं लगती है।
अन्य सफेद दाग के उपाय
Safed daag ke upay
– सौ-सौ ग्राम तिल व बावची लेकर महीन कूट लें। यह चूर्ण एक चम्मच रोज़ पानी से लेने से सफेद दाग ख़त्म हो जाते हैं। प्रयोग के दौरान गर्मी लगे तो कुछ दिन दवा बंद कर दें, उसके बाद फिर शुरू करें।
– बाबची व इमली के बीज तीन-चार दिन तक पानी में भिगोकर छाया में सुखा लें। इसे पीसकर सफेद दाग पर लगाने से लाभ होता है।
– सौ-सौ ग्राम चित्रकमूलक व बाबची लेकर मोटा-मोटा कूट लें। रात को इसमें से दो चम्मच मिश्रण एक कप पानी व दो कप दूध में मिलाकर उबालें, जब केवल दूध बचे तो छानकर उसकी दही जमा दें। इस दही में आधा कप पानी मिलाकर लस्सी बना लें। ध्यान रहे इस लस्सी में नमक या चीनी नहीं मिलाना है। प्रतिदिन इस लस्सी का सेवन करें। कभी-कभार इस लस्सी से मक्खन निकालकर सफेद दाग पर लगाएं, लाभ होगा।
– सौ-सौ ग्राम रिजका और खीर ककड़ी का रस मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से लाभ होता है। यह प्रयोग कुछ महीनों तक नियमित करना चाहिए।
– लहसुन के रस में हरड़ का पाउडर मिलाकर लगाने से भी लाभ होता है। लहसुन के रस में हरड़ को घिसकर लगाने से भी लाभ होता है।
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– यदि चार माह तक काले चने का पेस्ट बनाकर सफेद दाग पर लगाया जाए तो काफ़ी लाभ होता है।
– रात को सोते समय तांबे के बर्तन में पानी भरकर रख दें, सुबह उठकर उसे पीने से लाभ होता है।
– पानी में दो चम्मच अखरोट का पाउडर मिलाकर लगाने से लाभ होता है। दिन में तीन बार इसे लगाना चाहिए। इसे लगाकर बीस मिनट तक छोड़ देना चाहिए।
– नीम की पत्तियों को पीसकर कपड़े में डालकर उसका रस निचोड़ लें, उसमें एक चम्मच मधु डालकर दिन में तीन बार सेवन करने से काफ़ी लाभ होता है।
– अदरक की पत्तियों को घिसकर सफेद दाग पर लगाने से लाभ होता है।
– बथुआ की कढ़ी खाने और उसे सफेद दाग पर दिन में दो-तीन बार लगाने से लाभ होता है। आलू बथुआ पराठा बनाने की विधि जानिए।
– अनार की पत्तियों को छाया में सुखाकर चूर्ण बना लें। 8 ग्राम चूर्ण सुबह-शाम ताज़ा पानी के साथ लेने से लाभ होता है।
सावधानी व बचाव
– क्रीम-पाउडर व साबुन आदि से परहेज़ करें।
– आयरन युक्त पर्दाथों जैसे मांस, अनाज, फलीदार सब्ज़ियों, दाल व हरी पत्तेदार सब्ज़ियों का सेवन ज़्यादा करें।
– किसी प्रकार का तनाव न लें।
– सुबह के समय आधा घंटे धूप में बैठें।
– इमली, मछली, समुद्री जीव व खट्टे फलों का सेवन न करें।
– खारयुक्त पदार्थों से पूरी तरह परहेज़ करें।
– ध्यान करना और छाछ पीना लाभदायक है।
– गाजर, लौकी व दालों का अधिक सेवन लाभकारी है।
– एलोवेरा का जूस व चार बादाम का रोज़ सेवन फ़ायदेमंद है।
– सफेद तिल, पालक, खजूर व गाय के घी का सेवन लाभदायक है।
– अदरक के जूस का सेवन कर सकते हैं, यह रक्त संचार बढ़ाने के साथ ही शरीर को शक्ति प्रदान करता है।
– नियमित अंजीर व अखरोट का सेवन करें।
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